
विवेक शुक्ला
गांधी जयंती पर सुबह राजघाट और फिर शाम को गांधी स्मृति में सर्वधर्म प्रार्थना सभा में एक बेहद अहम शख्सियत की इस बार कमी खली। वो बीती आधी सदी से भी अधिक समय से राजधानी में बापू के बलिदान दिवस, जयंती से लेकर खास सरकारी आयोजनों में होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में भाग लेती रही हैं। हम बात कर रहे हैं कात्सू सान की। वो 2 अक्तूबर तथा 30 जनवरी को राजघाट और फिर तीस जनवरी मार्ग (बिड़ला हाउस) में आयोजित होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का स्थायी चेहरा हैं। 88 साल की कात्सू सान की उर्जा देखने लायक है। उन्होंने सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं के दौरान फखरूद्धीन अली अहमद, शंकर दयाल शर्मा, के.आर. नारायणन, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा सिंह पाटिल, प्रणव कुमार मुखर्जी, राम नाथ कोविंद जैसे राष्ट्रपतियों तथा श्रीमती इंदिरा से लेकर नरेन्द्र मोदी तक के सामने बुद्ध धर्म ग्रंथों से प्रार्थना पढ़ी है। वो बीते कई महीनों से बीमार हैं। आप चाहें तो छोटे कद की कात्सू सान को देश की सबसे बुलंद गांधीवादी मान सकते हैं।
सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में हिन्दू, इस्लाम,पारसी, सिख, बहाई, यहूदी धर्मों के धार्मिक ग्रंथों से पाठ होता है।
कात्सू सान के नेतृत्व में ही सर्वधर्म प्रार्थना होती रही है। उन्हें सब कात्सू बहन कहते हैं। गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्दातों को लेकर उनकी निष्ठा निर्विवाद है। कात्सू सान मूलत: जापानी नागरिक हैं। वो 1956 में भगवान बुद्ध के देश भारत में आईं थी ताकि उन्हें और गहराई से जान लें। एक बार यहां आईं तो उनका गांधीवाद से भी साक्षात्कार हो गया। उसके बाद तो उन्होंने भारत में ही बसने का निर्णय ले लिया।
सर्वधर्म प्रार्थना का विचार गांधी जी ने ही संसार को दिया था। उनके जीवनकाल में यह आरंभ हो गई थी। उनके संसार में न रहने के बाद भी 2 अक्तूबर, 30 जनवरी तथा अन्य विशेष अवसरों पर सर्वधर्म प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं। कात्सू सान को कुछ लोग मां जी भी कहते हैं। कुछ उन्हें कात्सू बहन भी कहते हैं। उनसे मिलकर लगता है कि आप अपनी मां का आशीर्वाद ले रहे हैं। उनसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी मिलते हैं। इंदिरा गांधी उनके साथ खड़ी हो जाती थीं, नरेन्द्र मोदी भी उनका हालचाल पूछते रहे हैं। वो बीते कई महीनों से बीमार हैं।
कात्सू सान के शीघ्र स्वस्थ होने की राजधानी में रहने वाले तमाम गांधीवादी प्रार्थना कर रहे हैं। कात्सू सान के ही प्रयासों से राजधानी में विश्व शांति स्तूप स्थापित हुआ। कात्सू सान धारा प्रवाह हिंदी बोलती हैं। उन्होंने हिंदी काका साहेब कालेकर से सीखी। मुस्कान उनके चेहरे का स्थायी भाव है। कात्सू सान उन गांधीवादियों में शामिल हैं जो विश्व बंधुत्व, प्रेम और शांति का संदेश देने के लिए भारत के गांवों, कस्बों, शहरों और महानगरों में घूमती हैं।
गांधी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को लेकर उनकी निष्ठा निर्विवाद है। उन्हें अब भारत अपना देश लगता है। उन्हें भारत के कण-कण में पवित्रता दिखाई देती है। वो भारत को संसार का आध्यात्मिक विश्व गुरु मानती हैं। कात्सू सान के मुताबिक भगवान बुद्ध और गांधी जी के रास्ते एक तरफ ही लेकर जाते हैं। दोनों सदैव प्रासंगिक रहने वाले हैं। दोनों का जीवन पीड़ा को कम करने और समाज से अन्याय को दूर करने के लिए समर्पित था। वो कहती हैं, “ मुझे तो दुनिया में कोई अन्य देश नहीं मिला जहां पर सरकारी कार्यक्रमों में सर्वधर्म प्रार्थना सभा आयोजित होती हो। यहां पर सभी धर्मों का सम्मान होता है।”
ब्रदर सोलोमन ने सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में की बार कात्सू बहन के साथ भाग लिया है। दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी से जुड़े हुए ब्रदर सोलोमन जॉर्ज को कात्सू सान में अपनी मां का अक्स नजर आता है। ब्रदर सोलोमन को यकीन है कि कात्सू सान शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएंगी। उनकी मौजूदगी में सर्वधर्म प्रार्थना सभा में भाग लेने का आनंद दोगुना हो जाता है।
महात्मा गांधी की सर्वधर्म प्रार्थनाओं में ईसाई प्रार्थना पहले दिन से ही आरंभ हो गई थीं। उनका ईसाई धर्म, बाबइल और मिशनरियों के कामकाज से साक्षात्कार तब हुआ जब वे दक्षिण अफ्रीका में रहते थे। यह जानकारी जॉर्ज सोलोमन देते हैं। जॉर्ज सोलोमन विभिन्न स्थानों पर हुईं सर्वधर्म प्रार्थनाओं में बाइबल का पाठ करते रहे हैं। वे कहते हैं कि भारत में सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का सरकारी आयोजनों में भी होना इस बात की गवाही है कि ये भारत सबका है। बाकी धर्मों के ग्रंथों की तरह बाइबल का भी रास्ता एक-दूसरे से प्रेम और भाईचारे का संदेश देता है। सर्वधर्म प्रार्थना का विचार वास्तव में बहुत बड़ा और व्यापक है। ये एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि भारत में सब धर्मों को मानने वाले एक-साथ बैठकर अपने धर्मग्रंथों के मुख्य बिन्दुओं को रख सकते हैं।
बहाई धर्म की प्रार्धना को 1985 में शामिल किया गया। बहाई प्रार्थना का पाठ करने वाले ड़ॉ. ए.के. मर्चेट ने बताय़ा कि बहाई प्रार्थना को सर्वधर्म प्रार्थना से जोड़ा गया प्रख्यात गांधीवादी श्रीमती निर्मला देशपांडे के प्रयासों से। उन्होंने इस बाबत स्वयं पहल की। उन्हें भी उम्मीद है कि कात्स सान फिर से सक्रिय हो जाएंगी।
महात्मा गांधी ने सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का सबसे पहले आयोजन राजधानी के वाल्मिकी मंदिर में शुरू किया था। तब देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। गांधी जी की चाहत थी कि इस पहल से विभिन्न धर्मों को अनुयायी एक-दूसरे के धर्मों और उनकी शिक्षाओं को जान लेंगे। वे वाल्मिकी मंदिर में 1 अप्रैल 1946 से 10 जून 1947 में रहे थे। वे बिड़ला मंदिर शिफ्ट हुए तो भी सर्वधर्म प्रार्थना सभाएं जारी रहीं।
सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में पारसी धर्म का प्रतिनिधित्व
इरवर्ड केवेस डी. बागली करते हैं। उनसे पहले राजघाट तथा तीस जनवरी मार्ग में सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में उनके पिता पारसी प्रार्थना का पाठ करते थे। वे पारसी धर्म के धार्मिक ग्रंथ अवेस्ता, जिसे ज़ेंद अवेस्ता भी कहते हैं, से श्लोक पढ़ते हैं। ये सब विश्व कल्याणा और संसार के सभी प्राणियों की सुख- समृद्धि से संबंधित होते हैं। आशा की जानी चाहिए कि कात्सू सान आगामी 30 जनवरी को गांधी जी के बलिदान दिवस पर होने वाली प्रार्थना सभा में अपनी मौजदूगी दर्ज करवाएंगी।