इंस्पेक्टर ने 10 लाख लेकर अपराधी को छोड़ा?

इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली पुलिस के दो इंस्पेक्टरों पर वसूली के लिए एक व्यक्ति को अवैध तरीक़े से बंधक बनाने और यातनाएं देने का मामला सामने आया है।

पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा अगर अपनी निगरानी में जांच कराएं तो ही यह सच्चाई सामने आ सकती हैं कि इंस्पेक्टरों ने पैसे लेकर अपराधी को छोड़ दिया या बेकसूर से वसूली की है।

कमिश्नर को अगर पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और निरंकुश पुलिसकर्मियों पर अंकुश लगाना है तो इस मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। क्योंकि पुलिस ने अपराधी को छोड़ा या बेकसूर से वसूली की है, दोनों ही सूरत में पुलिसकर्मियों ने अपराध तो किया ही है।

बाहरी उत्तरी जिले के एएटीएस(वाहन चोरी निरोधक दस्ते) के इंस्पेक्टर संदीप यादव, इंस्पेक्टर पवन यादव और एएसआई राकेश आदि पर यह गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

अदालत का डीसीपी को आदेश-
रोहिणी अदालत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट तपस्या अग्रवाल ने 31 अगस्त को बाहरी उत्तरी जिले के डीसीपी बृजेन्द्र कुमार यादव को आदेश दिया कि वह उपरोक्त पुलिसकर्मियों के मोबाइल फोनों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड सुरक्षित रखे।

अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि समय पुर बादली थाना, जहां पर एएटीएस का दफ्तर हैं वहां पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी सुरक्षित रखी जाए।

आठ अगस्त से लेकर दस अगस्त तक की मोबाइल फोनों की सीडीआर और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज सुरक्षित रखी जाए।
इंस्पेक्टर संदीप यादव, इंस्पेक्टर पवन यादव आदि के सरकारी मोबाइल फोनों के अलावा उनके निजी मोबाइल फोनों की सीडीआर भी सुरक्षित रखी जाए।

जिससे पुलिसकर्मियों की मौके पर मौजूदगी/लोकेशन, शिकायतकर्ता के परिजनों को वसूली के लिए कॉल करने आदि का पता लगाया जा सकता है।

वसूली के लिए अत्याचार-
आरोप है कि प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी चलाने वाले अजय रोहिल्ला को एएटीएस वाले 8 अगस्त को ले गए। हथकडी लगा कर गैरकानूनी तरीक़े से बंधक बना कर रखा और उसकी पिटाई की गई।

आरोप है कि अजय रोहिल्ला को गैरकानूनी तरीके से मोबाइल फोन की सीडीआर निकलवाने के आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी देकर लाखों रुपए की मांग की गई। वसूली के बाद ही अजय रोहिल्ला को छोड़ा गया।

10 लाख वसूलने का आरोप –
वकील सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया कि दस लाख रुपए वसूलने के बाद अजय को छोड़ा गया। अजय से मांगे तो तीस लाख रुपए गए थे।

पुलिस को रकम अजय की मां/परिजनों ने दी। रकम बादली इलाके में नहर के पास दी गई।

मंजीत मलिक नामक पुलिसकर्मी रकम लेने आया था।

पुलिस ने अजय रोहिल्ला का लैपटॉप और मोबाइल फोन भी गैरकानूनी तरीके से अपने पास रख लिया।

आईपीएस ईमानदारी से जांच करें-
आईपीएस अफसर अगर ईमानदारी से जांच कराएं, अजय की मां/परिजनों और पुलिस कर्मियों के मोबाइल फोन की सीडीआर देखें तो यह भी आसानी से पता चल जाएगा कि कौन पुलिसकर्मी अजय की मां की लोकेशन (नहर) पर मौजूद था। इससे ही पता चल जाएगा कि वह पुलिसकर्मी वसूली की रकम लेने गया था।

अजय को जब पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाया हुआ था तब आधी रात के बाद तक वकील संजय शर्मा, करन सचदेवा और नितिन भारती आदि भी उसकी पैरवी करने वहां मौजूद थे। वकीलों के सामने ही तीस लाख रुपए मांगे गए।

निरंकुश, बेखौफ-
अगले दिन तक भी जब अजय रोहिल्ला पुलिस की गैरकानूनी हिरासत में था तभी वकील संजय शर्मा ने इस मामले की शिकायत पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा, स्पेशल कमिश्नर दीपेंद्र पाठक, संयुक्त आयुक्त विवेक किशोर आदि को की। जिले के नाइट जीओ एसीपी विवेक भगत को तो 8-9 अगस्त की रात में ही सूचना दी गई थी।

वरिष्ठ अफसरों को शिकायत करने के बावजूद अजय रोहिल्ला को पैसा वसूलने के बाद ही छोड़ा गया। इससे पता चलता है कि आईपीएस अफसरों के चहेते इंस्पेक्टर कितने बेखौफ और निरंकुश हो गए हैं। इस मामले की मानवाधिकार आयोग को भी शिकायत की गई है।

पुलिस की कहानी-
बाहरी उत्तरी जिला के डीसीपी बृजेंद्र कुमार यादव ने दस अगस्त को एएटीएस की एक कहानी मीडिया में दी। पुलिस ने पवन कुमार नामक व्यक्ति को आठ अगस्त को गिरफ्तार कर दावा किया कि पवन मोटी रकम लेकर गैरकानूनी तरीके से लोगों को मोबाइल फोन की सीडीआर उपलब्ध करवाता था। पवन नोएडा की वीनस डिटेक्टिव एजेंसी में काम करता है।

पवन किस पुलिस कर्मी या मोबाइल नेटवर्क कंपनी के किस व्यक्ति के माध्यम से सीडीआर निकलवाया करता था। पुलिस ने यह बात उस समय मीडिया को नहीं बताई। इस मामले में बाद में कई अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया।

पुलिसकर्मी या मोबाइल नेटवर्क कंपनी के लोगों की मिलीभगत के बिना अवैध रुप से सीडीआर निकाली ही नहीं जा सकती।
सूत्रों से पता चला है कि सीडीआर मामले में एक पुलिसकर्मी भी शामिल है।

पुलिस ने अपराध किया –
इस मामले में सबसे बड़ा और गंभीर सवाल यह है कि क्या अजय रोहिल्ला भी गैरकानूनी तरीके से सीडीआर उपलब्ध कराने के अपराध में शामिल है। अगर हां, तो पुलिस ने उसे छोड़ कर संगीन अपराध किया है।

लेकिन अगर अजय बेकसूर है तो पुलिस द्वारा वसूली ,अवैध हिरासत और यातनाएं देना भी तो संगीन अपराध ही है। दोनो ही सूरत में पुलिस ने अपराध किया है।

पुलिस कमिश्नर अगर ईमानदारी से जांच कराएं तो ही यह पता चल सकता है कि जांच के नाम पर एएटीएस में डिटेक्टिव एजेंसियों की महिलाओं समेत किन-किन लोगों को बुलाया गया था और उनकी भूमिका क्या थी। उन सभी को बुलाने और छोड़ने की पूरी कहानी सामने आनी चाहिए।

सीडीआर उपलब्ध कराने में क्या कोई पुलिसकर्मी शामिल है? क्या एएटीएस ने उस पुलिसकर्मी को पकड़ने की कोशिश की थी या उसे बचाया गया है।

एसीपी की भूमिका-
कमिश्नर को यह भी जांच करानी चाहिए कि जब वकील ने नाइट जीओ एसीपी विवेक भगत को शिकायत की थी तो एसीपी विवेक भगत ने उस पर क्या कार्रवाई की थी।

कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसरों की जिम्मेदारी बनती है कि वह पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से जांच कर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाएं।

इंस्पेक्टर कैसे बना दिया ? –
कमिश्नर को यह भी जांच करानी चाहिए कि सतर्कता विभाग में शिकायत पेंडिंग होने के बावजूद संदीप को सब-इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर के पद पर कैसे पदोन्नत कर दिया गया।

इंस्पेक्टर संदीप यादव और हवलदार संदीप शौकीन के खिलाफ अलवर के नवीन बंसल ने भी मार्च 2019 में दिल्ली पुलिस के सतर्कता विभाग में शिकायत की थी। लेकिन अब तक इंस्पेक्टर संदीप यादव आदि के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। नवीन बंसल का आरोप है कि 2019 में तत्कालीन सब- इंस्पेक्टर संदीप ने असली अपराधी को छोड़ दिया और उसे झूठे मामले में फंसा दिया ।

नवीन ने इंस्पेक्टर संदीप यादव और हवलदार संदीप शौकीन द्वारा धमकी देने की ऑडियो रिकॉर्डिंग भी सतर्कता विभाग को दी हुई है।

एसीपी ने 15 लाख मांगे-
सीबीआई ने 31अगस्त को बाहरी उत्तरी जिले के ही बवाना थाना स्थित नारकोटिक्स शाखा में तैनात एसीपी बृज पाल के खिलाफ नशे के सौदागर से 15 लाख रुपए रिश्वत मांगने का मामला दर्ज किया है। इस मामले में एएसआई दुष्यंत गौतम को सात लाख 89 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया है।

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)