विनोद तकियावाला
दिल्ली वासियों सम्बन्ध राम लीलाओं से काफी ही पुराना है। विगत दिनों दिल्ली व एन सी आर मे रामलीला का मंचन व जय श्री राम से पुरा वातावरण गुंजायमान था।वैश्विक महामारी कोरोना संकट के दो वर्षों के बाद दिल्ली वासी शाम होते ही अपने परिवार के सदस्यो के संग रामलीला का आनंद लेने घर से निकल पड़ते थे।मुझे भी कुछ रामलीलाओं को तीरक्षी नजर से देखने का सुअवसर मिला।इस दौरान मुझे रामायण के कई पात्रओ के बारे में बारिकी से जानने का अवसर मिला। इस क्रम में कई ऐसे क्षण आयें जिसने मुझे ना प्रभावित किया बल्कि कुछ सोचने को मजबूर कर दिया विशेष कर राम – रावण युद्ध का प्रसंग।आप को बता दें राम – रावण का युद्ध काफी ही शिक्षाप्रद व रोचक है।आज रामलीलाओं में मर चुका है रावण का शरीर,सुनसान है किले का परकोटा,चारो दिशाओं में उदासी पसरी है,किसी के घर में नही जल रहा दीया।विभीषण के घर छोड़ कर सागर के तट पर बैठ है विजय श्री राम।विभीषण को लंका का राज्य पाठ सौंपते हुए ताकि सुबह हो सके र्निविघ्न राज्याभिषेक,स्वयं राम लक्ष्मण से पुछते अपने सहयोगियों के कुशल क्षेम,चरणो में हनुमान बैठे। लक्ष्मण मन से क्षुब्द है।भ्राताश्री राम सीता माता को अशोक बाटिका मे क्यों नही लेने जाते है।
विभीषण का राज्याभिषेक हो गया है।लंका में राम प्रवेश कर एक भव्य भवन पहुंच गये है। हनुमान को अशोक वाटिका में संदेश देने भेजते है कि रावण मारा गया है और अब विभीषण लंकापति है।हनुमान का यह संदेश सुनकर माँ सीता खामोश है,निहारती है उस रास्ते को।उनके मन में प्रश्न उठते है कि रावण का वध करते ही वनवासी राम,राजा राम बन गये क्या।लंका पहुंच कर वे क्यूं नही जानना चाहते है,एक वर्ष कहाँ रही सीता,कैसे रही उनकी सीता।मॉ सीता के नयनों से अविरल बहते हए अश्रुधार।ना’ राम भक्त हनुमान नही समझ पाते,ना रामायण के रचयिता बाल्मिकी कह नही पाते है।माँ सीता आज सोचती है कि अगर राम आते मै उन्हें यहाँ के परिचायिकाओं से,जिन्होने रावण के आदेश पर मुझे भयभीत तो किया लेकिन नारी के पूर्ण गरिमा प्रदान की ,वे रावण की अनुचरी थी लेकिन मेरे लिए माताओं के समान थी।अगर स्वयं राम आते यहां तो उन्हे मिलवाते यहाँ के अशोक के वृक्षों से जिन्होंने मुझे अपने विश्वास पर अड़े रही,यहाँ की माधवी लताओं से जिन्होने उनकी सीता कीआँसुओं को ओंस के कणों की तरह सहेज कर रखा।
लेकिन वे अब तो वे राजा राम है कैसे आते अपनी सीता को लेने के लिए ।
कई पहर बीत गए ,लंकापति विभीषण के नेतृत्व में माता सीता जी का श्रंगार कर पालकी मे सीता सोचती है राजा जनक जी ने भी तो इसी तरह विदा किया था उन्हें।
तभी वातावरण में गुंजता है,राम का स्वर,सीता को मेरे पास पैदल आने दो।भुमि सुता जमीन पर कॉपती हुई चलते मन में ज्वलंत प्रशन उठते है कि मैंने स्वयंवर में जिसका वरण किया था क्या वही है यह पुरुष,जिसके प्रेम में अयोध्या का महल छोड़ कर उनके संग वन वन भटकी थी।हॉं रावण नें गोद मे उठाया था।मुझसे क्या था प्रणय निवेदन वह स्वयं में राजा था ,चाहता तो बल पूवर्क ले जाता राजमहल में,लैकिन उसने मेरे स्त्रीत्व का अपमान कभी नही किया। रावण के विषय में सही जानकारी से आज बहुत लोग अपरिचित है।रावण कौन था ‘ क्या रामायण का एक पात्र मात्र था आपके मन भी कुछ सवाल होंगे तो मै बता दूँ कि रावण एक
महाज्ञानी,महा पराक्रमी और महाबलशाली था।रावण चारों वेदों का जानकार था।वह धरती पर मौजूद सबसे बुद्धिमान व्यक्तियों में से एक था।हालांकि उसके अहंकार के कारण उसका अंत हुआ।रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उसे यह वरदान था कि कोई भी देवी-देवता का उसका अंत नहीं सकता।यही कारण है कि रावण का वध करने के लिए भगवान विष्णु को मानव रूप में अवतार लेना पड़ा।भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम ने रावण की नाभि में तीर मारकर उसका अंत किया।रावण के अंत से पहले भगवान श्रीराम और रावण की सेना के बीच कई दिनों तक युद्ध चला।धर्म और अधर्म के बीच हुआ यह युद्ध कितने दिनों तक चला,इस बार में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और रावण की सेना के बीच 84 दिनों तक युद्ध लड़ा गया।युद्ध में सफलता के लिए भगवान श्रीराम ने शक्ति की उपासना की थी।जिसके बाद लगातार 9 दिनों तक युद्ध के बाद दसवें दिन रावण का अंत कर दिया।इसलिए हिन्दू धर्म में नौ दिनों तक शक्ति की उपासना की जाती है और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और रावण के बीच लगातार 8 दिनों सीधे युद्ध हुआ था।अश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को दोनों के बीच शुरू हुआ संग्राम दशमी को रावण वध के साथ समाप्त हुआ। रावण का अंत करने के बाद भगवान श्रीराम को वापस अयोध्या पहुंचने में करीब 20 दिन लगे थे।शास्त्रों के अनुसार रावण की सेना में करोड़ो लोग थे, बावजूद इसके भगवान श्रीराम और उनकी वानर सेना ने बहुत पराक्रम के साथ युद्ध किया और श्रीराम ने रावण का अंत कर दिया।सिर्फ रावण ही नहीं बल्कि उसकी सेना में ऐसे कई पराक्रमी योद्धा थे,जिन्हें किसी मनुष्य के लिए हराना असंभव था।इसलिए भगवान विष्णु के अवतार के साथ-साथ भगवान शिव और अन्य देवताओं ने भी अवतार लिए थें।श्रीराम-रावण के युद्ध में रावण के चार भाइयों कुम्भकर्ण, खर, दूषण और अहिरावण ने हिस्सा लिया था।इनमें से अहिरावण का अंत हनुमानजी ने किया था जबकि बाकी तीन भाइयों का अंत श्रीराम के हाथों हुआ।युद्ध में रावण के सात शूरवीर पुत्र भी उतरे थे।इनमें से मेघनाद,प्रहस्त और अतिकाय का अंत लक्ष्मणजी ने किया जबकि नरान्तक,देवान्तक और अक्षयकुमार का अंत हनुमान के हाथों हुआ।रावण के एक पुत्र त्रिशिरा का अंत श्रीराम के हाथों हुआ।आगे की कथा आप सभी स्वयं जानते है-स्वयं सीता को अग्नि परीक्षा तक देने पड़ी राम,सीता व लक्ष्मण अयोध्या लौटे,नगर वासियों नें दिवाली मनाई।मै उदास हूँ दशहरे की रात से।रावण को आज जिसने भी जलाई है क्या उसमें से किसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुण थें क्या।चाहे वे केन्द्रीय मंत्री हो ,मुख्य मंत्री हो या राजनीतिक दलों के राजनेता हो,समाज सेवी।मेरे मन में बार यह बार एक सबाल पूछ रहा है।यहाँ आप में से कोई राम है क्या।मुझे तो यहाँ कोई नही मिला।अगर आप को कोई दिखे तो हमे भी बतायेगा जरूर।
फिलहाल आपसे यह कहते हुए विदा लेते है कि “ना ही काहुँ से दोस्ती।ना ही काहुँ सें बैर॥खबरी लाल तो माँगें।सबकी खैर”॥
फिर मिलेगे,तीरक्षी नजर से तीखी खबर के संग।अलविदा