ऋतुपर्ण दवे
सियासत के न जाने कितने रंग और रूप होते हैं, शायद सियासतदारों को भी न पता हो। शह और मात का खेल शतरंज में होता जरूर है लेकिन मौजूदा दौर में तो वह सियासत पर परवान चढ़ाता चाहे जब और जहां दिख जाता है। इन दिनों देश में गुजरात और हिमाचल के विधानसभा चुनाव के साथ दिल्ली महानगर पालिका चुनावों की पूरे देश में भले ही चर्चा हो रही हो लेकिन एक राज्य ऐसा भी है जहां विधानसभा चुनाव को पूरे वर्ष भर बांकी हैं लेकिन राजनीतिक सरगर्मियां कुछ ऐसी हैं कि पूछिये मत। चुनावी समर में भाजपा और कांग्रेस किसी भी तरह की जोर आजमाइश में एक दूसरे से पीछे नहीं है। राष्ट्रपति का दौरा, प्रधानमंत्री का महीने भर के अन्तराल में दो बार दौरा, केन्द्रीय गृह मंत्री का दौरा और अब सरकार की गौरव यात्रा तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के पहुंचने के मायने बेहद खास हैं। कहने की जरूरत नहीं कि बात मध्यप्रदेश की हो रही है। अगले वर्ष यानी 2023 में ठीक इन्हीं दिनों देश का दिल कहें या भारत का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश चुनावी कोलाहल की उफान में डूबा हुआ होगा। ऊंट किस करवट बैठेगा इसको लेकर कोई ठोस दावा भी होता नहीं दिख रहा है।
2018 के चुनाव में थोड़े से अंतराल से पिछड़ने के बाद बहुमत से पिछड़ी भाजपा को दोबारा सत्ता में आने खातिर जिस तरह से नाटकीय घटनाक्रम हुए जिसमें कांग्रेस विधायकों का थोक इस्तीफा, दलबदल और उप-चुनाव में पसीना बहाकर बहुमत हासिल करना पड़ा, वैसी नौबत ही न आए सारी कवायद बस इतनी है। मतदाताओं को साधने की कवायद में भाजपा तेजी से सक्रिय है। किसी न किसी बहाने लोगों तक पहुंच रही है उस मुकाबले कांग्रेस बहुत पीछे है। राहुल गांधी की पदयात्रा कांग्रेस को कितनी संजीवनी दे पाएगी यह वक्त बताएगा। लेकिन जो दिखता है और लोग मानते भी हैं कि जिस आत्मविश्वास, उत्साह, इशारे और संगठानात्मक मजबूती के साथ शिवराज सिंह चौहान के तेवर बदले हुए हैं वो बताते हैं कि वो पांचवीं बार भी प्रदेश की कमान संभालने की जुगत में अभी से जुट गए हैं। तमाम सभाओं में आला अधिकारियों को फटकारना, निलंबित करना, अपराधियों विशेषकर बलात्कारियों या सूदखोरों के घर ढ़हा देने के फैसलों से भी एक नई हवा बनी है। कभी यह चर्चा होती थी कि वो दिल्ली को भाते नहीं है वह भी नहीं दिखती उल्टा प्रधानमंत्री के साथ उनकी हालिया लगभग सारी मुलाकातें और महीने में दो बार आने से भी जहां खुद भाजपा कार्यकर्ताओं को बड़ा संदेश गया वहीं प्रशासनिक हल्के को भी समझ आ गया है कि 2023 की कैसी तैयारी करना है।
17 सितंबर और महीने भर के ही अन्दर 12 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मध्यप्रदेश में उपस्थिति बताती है कि मिशन 2023 के लिए मोदी का प्रदेश में सबसे ज्यादा भरोसा किस पर है। 17 सितंबर अपने 72 वें जन्मदिन पर मध्यप्रदेश के कूनो अभ्यारण्य में 8 चीते जिन्हें नामीबिया से लाकर छोड़ना तो वहीं 26 दिन बाद ही धार्मिक नगरी उज्जैन में सुप्रसिध्द बाबा महाकाल लोक का उद्घाटन कर इतना तो साफ कर दिया कि कि भाजपा अगला चुनाव किसके नेतृत्व में या किसे मुखिया बनाकर लड़ेगी। दोनों ही मौकों पर प्रधानमंत्री के सबसे करीब और सबसे ज्यादा वक्त तक कोई दिखा तो वो थे शिवराज सिंह चौहन। रही-सही कसर इस मौके की सामने आई तमाम तस्वीरों ने पूरी कर दी। राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं को ही लें तो गलत नहीं होगा क्योंकि आजादी के अमृतकाल में जहां चीतों के पुनर्वास का अलग सा काम हुआ वहीं कहा जाता है कि महाकाल मंदिर जिसका निर्माण द्वापर युग से भी पहले का है तथा इतिहास बताता है कि मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए तथा 11वीं सदी में इल्तुतमिश ने नष्ट भी कर दिया जिसे बाद में हिंदू राजाओं ने इसका पुर्ननिर्मित करवाया। उसी महाकाल के महालोक का नया लुक देने का ऐतिहासिक काम अब हुआ। स्वाभाविक है दोनों बड़ी उपलब्धियां है और श्रेय किसको जाता है, सबको पता है। जाहिर है शिवराज सिंह चौहान ने वो रास्ता सुरक्षित कर लिया जिसमें प्रदेश के विकास और समृध्दि के साथ उनकी राजनीतिक धाक भी मायने रखती है।
अभी मध्य प्रदेश का मालवा-निमाड़ सियासी अखाड़ा बना हुआ है। वहीं 15 नवंबर को विन्ध्य में राष्ट्रपति की शहडोल यात्रा के दौरान जनजातीय वर्ग को साधने खातिर बिरसामुण्डा जयंती के मौके पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का मप्र की धरती में पहले आगमन पर विन्ध्य, महाकौशल के 11 जिलों के जनजातीय समुदाय की उपस्थिति और इसी दिन राष्ट्रपति पेसा एक्ट (पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) लागू किए जाने के मायने बहुत गहरे हैं। राष्ट्रपति की मौजूदगी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बेहद अलग व कड़क भाषण सुनने को मिला। पेसा एक्ट की खूबियाँ बताकर इसे जनजाति समुदाय का स्वराज साबित बताना बताता है कि दरअसल कहीं पे निशाना और कहीं पे निगाहें हैं। मध्यप्रदेश में जो भी कुछ राजनीतिक सरगर्मियां है नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर है। 230 सीटों में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 35 तो वहीं आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। मध्यप्रदेश में 84 विधानसभा सीटों पर आदिवासी वोट बैंक का जबरदस्त दखल है। 2018 में मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों के नतीजे बेहद चौंकाने वाले थे। 47 सीटों में भाजपा 16 जीत पाई थी जबकि कांग्रेस ने 30 सीटें जीतीं थीं। सरकार कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की बनीं लेकिन बाद में राजनीतिक जोड़-तोड़, इस्तीफे, दलबदल के चलते भाजपा ने 23 मार्च 2020 को कमल नाथ के स्थान पर न केवल वापसी की बल्कि उप-चुनाव में भी सफलता हासिल की जिससे शिवराज सिंह चौहान की चौथी पारी बरकरार है।
सारा खेल यही साधने का है राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के 23 नवंबर को मध्यप्रदेश पहुंचने के बाद सरगर्मी बढ़ गई है। इसके 3 दिन पहले 20 नवंबर से शिवराज सिंह की टंटया भील गौरव यात्रा का आगाज हो चुका है जो सभी 89 आदिवासी ब्लॉक जाएगी। दोनों ही यात्राओं का समापन 4 दिसंबर को होगा। गौरव यात्रा इन्दौर में थमेगी तो राहुल की यात्रा 12 दिनों में 386 किमी की मध्य प्रदेश यात्रा केवल बुरहानपुर, खड़वा, खरगोन, इंदौर, उज्जैन और आगर मालवा जिलों से होकर 4 दिसंबर को यात्रा आगर मालवा जिले से राजस्थान कूच कर जाएगी। यकीनन मध्यप्रदेश से राजनीति की बेहद रोचक तस्वीरें देश को दिखेंगी। जब आप यह पढ़ रहे होंगे तब जहां काँग्रेस का उत्साह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर चरम पर होगा वहीं उनके साथ उनकी बहन प्रियंका, बहनोई राबर्ट वाड्रा और भांजा रोहन 4 दिनों तक रहकर मध्यप्रदेश में काँग्रेस की राजनीति को एक नए सियासी मुकाम पर ले जाने की दिशा तय करेंगे।
ऐसा लगता है कि काँग्रेस ने भी सॉफ्ट हिन्दुत्व का रास्ता चुन लिया है क्योंकि मध्यप्रदेश में प्रवेश के मौके पर राहुल की बढ़ी हुई दाढ़ी और माथे पर पीला तिलक तो इन्दौर विमानतल से निकलते वक्त रावर्ट वाड्रा का महाकाल लिखा टी शर्ट पहनना वहीं प्रियंका गांधी द्वारा कार में अपनी गोद में माता को चुनरी संभाल रखना बड़ा संकेत है। कहने की जरूरत नहीं इसके सियासी मायने क्या हैं? प्रदेश में डेढ़ करोड़ जनजातीय वर्ग को साधने दोनों ही दलों की कवायद तेज है। एक दिन के ही अंतर से शिवराज सिंह चौहान व राहुल गांधी का मामा टंट्या भील की जन्म स्थली बड़ोद अहीर में पहुंचना बताता है कि 2023 का चुनाव पूरी तरह से जनजातीय वर्ग को साधने पर केन्द्रित है। शायद 2018 की पुनरावृत्ति दोनों ही दलों को स्वीकार्य नहीं होगी। मध्यप्रदेश में 80 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी मतदाता जीत-हार का फैसला करते हैं।
बस देखना यही है कि इस कवायद में कौन कितना तेज दौड़ पाता है क्योंकि शिवराज सिंह चौहान जहां पहले ही शहडोल में 11 जिलों के लोगों के जरिए एक खास संदेश देकर अब मालवा व पश्चिम निमाड़ पर नजरें गड़ाए हुए हैं वहीं कांग्रेस केवल राहुल गांधी का पसीना बहाकर कितना फायदा ले पाती है?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं)