बृजेश कुमार
एक तरफ गुजरात में बीजेपी काबिज है तो दूसरी तरफ हिमांचल में भी बीजेपी की सरकार है। लेकिन गुजरात और हिमांचल में जमीन आसमान का अंतर है ।गुजरात में जहां 27 सालों से बीजेपी सत्ता में रही है। तो दूसरी तरफ हिमांचल में सत्ता प्रत्येक 5 साल में बदलती रही है। जैसे की लोहिया नें कहा था कि तव की रोटी की भांति सत्ता प्रत्येक 5 वर्ष बाद बदलती रहना चाहिये। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि बदलाव होनें की संभावना कम है। हां जरूर यह कह सकते हैं, कि हिमांचल में कांग्रेस की सीटें बढ़ सकती है। लेकिन सत्ता से वंचित रहना पड़ सकता है।
खैर स्थिति परिस्थिति क्या होगी स्पष्ठ तौर पर 8 दिसंबर को ही पता चलेगा। क्योंकि हिमांचल में मतदान 12 नवंबर को हो चुके हैं तो दूसरी तरफ गुजरात में मतदान 1 और 5 दिसंबर को होना है। दूसरी बात 2024 का चुनाव नचदीक है। सत्ताधारी दल के लिये चुनौतियां बड़ी हैं।
लेकिन दूसरी तरफ यह भी देखा जाना जरूरी है, कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा के मुद्दे अलग होते हैं। अगर आप जनता को समझना चाहते हैं तो पहले वर्तमान मुद्दों को समझना जरूरी है । लेकिन अगर आप मुद्दे को समझ पाते हैं तो यह भी समझना जरूरी है कि क्या विपक्ष जनता के बीच मुद्दे ले जाने में सक्षम है। जहां तक मै समझ सकता हूँ या स्पष्ठ तौर पर कह सकता हूँ कि विपक्ष की भूमिका संकुचित सी नजर आ रही है। क्योंकि आज देश में मंहगाई ,बेरोजगारी भ्रष्टाचार चरम पर है, तो दूसरी तरफ विपक्ष के नाकारापन से भी इंकार भी नहीं किया जा सकता है। जब बिहार में सरकार बदली तो विपक्ष को एक मजबूत स्तंभ के तारनहार के तौर पर देखा गया । बिहार सरकार ,राजस्थान या अन्य राज्यों की सरकारें अच्छा काम करती तो शायद 2024 की स्थिति बदली हुई नजर आ रही होती ।आरजेडी जदयू नें जरूर पहल की है ,विपक्ष को एकत्र करने की लेकिन अभी तक ममता बनर्जी का स्टैंड क्लीयर नहीं है। कभी तो प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करती हैं ,तो 4 दिन बाद ऐसा बयान जारी करती है, जिसमें विपक्ष के साथ खड़ी नजर आती हैं। इसी प्रकार की स्थिति कुछ दलों को छोड़कर पूरे विपक्ष की है। इसकी वजह यह आरोप भी हो सकते है। सीबीआई , ईडी जैसी संस्थाओं पर दुपरूपयोग हो रहें है। कहा ऐसा भी जा रहा है कि सीबाआई और ईडी बीजेपी के इशारे पर काम करती हैं । इस वजह से विपक्ष सहमा सहमा है ।क्योंकि एक ही थाली के सभी चट्टे बट्टे हैं ।देखेंगें तो साफ नजर आयेगा यूपी हो बिहार हर सड़क में गडढे हैं।
क्योंकि अगर बीजेपी सरकार नें अंबानी या अड़ानी को बढाया जैसा की आरोप लगता है। कांग्रेस सरकार में जिंदल या टाटा जैसी कंपनियों को बढ़ावा दिया गया था। हां जरूर यह कह सकते है कि इतने व्यापक तौर पर कभी भी इन संस्थाओं के दुरूपयोग का आरोप नहीं लगा ।
खैर राजनीति में सत्ता धारी दल सदैव अपने सभी प्यादों को सक्रीय रखता है। और हर दांव को चलता है जिससे सत्ता बची रहे। अगर जनता बटी रही तो सत्ता बची रहेगी। लोकतंत्र का यही सबसे बड़ा दांव है जो सत्ता तक पहुचाता है। सत्ताधारी दल का उद्देश्य होता है ऐन केन प्रकारेण सत्ता हस्तांतरित करने से बचे रहे। ऐसी स्थिति हमारे पड़ोसी देशों मे बानगी के तौर देखी जाती रही है। जिसमें सत्ता हस्तातंरण में कितनें लोंगों की जाने जाती है । अभी तक यह स्थिति भारत में नही देखने को नहीं मिली है। हां जब सरकार बहुमत खो देती है तो नैतिक रूप से जो मुखिया होता है जिसे विधायक ससंद दल का नेता चुना जाता है इस्तीफा सौपं देता है। अब इसमें समझने वाली यह बात यह भी है कि चुनी हुई सरकार जनता के प्रति अपने दायित्व को समझें । कार्यप्रणाली से जनता को लाभ प्राप्त हो सके साथ ही साथ व्यक्ति के रहन सहन खान पान आदि का स्तर उठाने में मदद मिल सके।
अब व्यापक तौर पर आप समझ चुके होंगे की देश में महंगाई ,बेरोजगारी का दंश बढ़ता जा रहा है।बीजेपी को ऐसे कई मुद्दों पर काम करने की आवश्यकता है । भले ही आज विपक्ष मजबूती से सवाल न उठा पा रहा हो । लेकिन हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिये जब जनता सवाल करेगी तो सिर्फ सवाल नहीं होगा । वहां बदलाव होते हैं भले ही कोई सरकार अगर अपने गर्व वश यह भूल जाये कि हम अपने हर रोडमैप पर खरे उतर रहे हैं। आपकी ताकत से विपक्ष में डर भय पैदा हो सकता है। लेकिन जनता में कोई भी सरकार डरा सिर्फ थोडे ही समय तक सकती है।
अभी भी आप किसान आंदोलन को भूले नही होंगे तो यह भी याद रखिये 24 की राह आसान नहीं है।
भले ही आज भारत जोड़ो यात्रा कामयाब हो या न हो लेकिन यह यात्रा लोगों में कांग्रेस के लिये जाग पाये या न पाये लेकिन अगर धरातल पर काम हुआ तो अपने अधिकारों को लिये जरूर जाग जायेगी।यह ऐसी घड़ी है जिसमें सरकार और जनता को जागृत होना होगा कि महगाई, भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके।और सरकार पटरी पर आ जाय।