रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजनीति का जादूगर कहा जाता है। राजनीति में उन्होंने अपनी जादूगरी दिखाने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी है। कैसी भी स्थिति रही हो गहलोत अपनी राजनीतिक जादूगरी की कुशलता के बल पर सफल रहे हैं। इसी कारण वह राजस्थान के तीसरी बार मुख्यमंत्री की पारी पूरी करने जा रहे हैं। गत दिनो उन्होने अपने कार्यकाल का अंतिम बजट पेश किया जिसमें अनेकों लोक लुभावनी घोषणायें की गई है। जिनसे आने वाले चुनाव में लाभ मिल सकता है।
इसी साल के अंत तक राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि वह चौथी बार मुख्यमंत्री बन कर राजस्थान में नया रिकॉर्ड बनायें। गहलोत का इस बार पूरा प्रयास है कि 1990 से प्रदेश में हर बार सरकार बदलने की चल रही परिपाटी को भी बदला जाए। इसके लिए गहलोत ने अभी से युद्ध स्तर पर अपनी तैयारियां प्रारंभ कर दी है।
बजट में प्रदेश के आमजन के लिए कई लोक-लुभावनी घोषणायें करने के साथ ही गहलोत राजनीतिक स्तर पर भी अगला विधानसभा चुनाव जीतने की व्यूह रचना में लगे हुए हैं। मुख्यमंत्री गहलोत राजस्थान के सभी सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा कर जहां भाजपा को धर्म संकट में डाल दिया है। वहीं पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के मुद्दे पर भी भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में पेयजल व सिंचाई के लिए पूर्वी नहर परियोजना एक वरदान साबित हो सकती है। इन 13 जिलों के करीबन साढ़े तीन करोड़ से अधिक लोगों को जहां पीने को मीठा पानी उपलब्ध हो सकेगा। वहीं डेढ़ से दो लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई भी होगी। जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने 2017-18 के बजट में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की घोषणा की थी। इस परियोजना में राजस्थान के जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, बूंदी, कोटा, बारां और झालावाड़ सहित कुल 13 जिले शामिल है। इस परियोजना के पूरा होने पर 13 जिलों में पेयजल और सिंचाई की सुविधा मिलने लगेगी।
मुख्यमंत्री गहलोत को यह बात अच्छे से पता है कि इन 13 जिलों में बढ़त मिलने पर कांग्रेस को दूसरी बार सरकार बनाने से कोई भी नहीं रोक सकता है। इन 13 जिलों में विधानसभा की 83 सीट आती है। जिनमें से अभी कांग्रेस के पास 49 और भाजपा के पास 25 सीट हैं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस हर हाल में इस मुद्दे को बनाए रखना चाहती है। जिससे मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकें। इसीलिए गहलोत इस नहर परियोजना को लेकर अग्रेसिव होकर राजनीति कर रहे हैं। उन्हें जहां भी मौका मिलता है भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इस नहर के मुद्दे को लेकर हमला करने से नहीं चूकते हैं। पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के मतदाताओं को लुभाने के लिए ही गहलोत ने इस बार बजट में नहर के लिये 13 हजार करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया है। गहलोत ने कहा है कि यदि केंद्र सरकार इस नहर परियोजना के लिये सहायता नहीं देती है तो भी वह राज्य सरकार के संसाधनों से इसे पूरा करेंगे।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दौसा यात्रा के दौरान भी मुख्यमंत्री गहलोत ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री से इस नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग की थी। गहलोत को पता है कि बार-बार इस परियोजना के लिए केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करके अगले विधानसभा चुनाव में वह भाजपा को घेर सकते हैं। केंद्र सरकार में जल शक्ति विभाग के मंत्री भी राजस्थान के जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत ही है। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उनसे भी बार-बार इस परियोजना के लिए केंद्रीय सहायता दिलाने की मांग करते आ रहे हैं। हालांकि मध्यप्रदेश व राजस्थान में आपसी सहमति होने पर ही केंद्र सरकार इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर सकती है। मगर अशोक गहलोत अच्छे से जानते हैं कि अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने का यह सबसे सुनहरा मौका है। जिसे वह किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहते हैं।
सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू करने के भाजपा पूरी तरह खिलाफ है। प्रधानमंत्री बार-बार पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने पर अपनी असहमति जता चुके हैं। इसी के चलते भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेता भी पुरानी पेंशन योजना की मुखालफत कर रहे हैं। मगर हिमाचल प्रदेश के पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार से पार्टी के अंदर खाने इस मुद्दे को लेकर चिंता भी जाहिर की जा रही है। हिमाचल प्रदेश में अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना देने का वादा किया था। हिमाचल में कांग्रेस को बहुत बड़ी जीत मिली। जिससे कांग्रेस पार्टी के नेता बहुत उत्साहित हैं।
हालांकि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत के अन्य कारण भी हो सकते हैं। मगर पुरानी पेंशन योजना बहाली का वादा भी एक बड़ा कारण रहा है। इसीलिए कांग्रेस पार्टी हर जगह पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग कर रही है। अपने बजट भाषण में भी मुख्यमंत्री गहलोत ने भाजपा के विधायकों से कहा था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझाएं कि वह कर्मचारियों के हित में पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू करें। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अनुसरण करते हुए छत्तीसगढ़ एवं झारखंड की सरकारों ने भी अपने सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना देने की घोषणा कर दी है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पुरानी पेंशन योजना की घोषणा के बाद भाजपा विरोधी बहुत से दलों ने भी इस मांग का समर्थन करते हुए इसे पूरे देश में लागू करने की मांग की है। केंद्र सरकार के कर्मचारी संगठन भी लंबे समय से पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। इसके चलते देश के सभी सरकारी कर्मचारियों का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रति सहानुभूति होना लाजमी है। गहलोत को इस बात की जानकारी है कि उनके द्वारा शुरू किया गया पुरानी पेंशन योजना का मुद्दा आज राष्ट्रव्यापी मुद्दा बन चुका है। ऐसे में वह इससे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
अगले विधानसभा चुनाव की पूरी कमान गहलोत के हाथों में ही रहनी है। इसीलिए उन्होंने अपनी सरकार की छवि चमकाने के लिए कई निजी प्रचार एजेंसियों से अनुबंध किया है। यह एजेंसियां अगले विधानसभा चुनाव तक गहलोत सरकार की उपलब्धियां आमजन तक पहुंचाने का काम करेगी। मुख्यमंत्री गहलोत को पता है कि 25 सितंबर को जयपुर में जो घटनाक्रम हुआ था उससे पार्टी आलाकमान उनसे नाराज है। इसके साथ ही उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी ठुकरा दिया था। उसके बाद वह आलाकमान की गुडबुक में नहीं रहे हैं। पार्टी आलाकमान को जब भी मौका मिलेगा उनको झटका दिया जा सकता है।
ऐसे में वह पार्टी आलाकमान का फिर से विश्वास हासिल करने के लिए राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को रिपीट करवाना चाहते हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए अगला विधानसभा चुनाव किसी युद्ध से कम नहीं है। यदि वह चुनाव जीतते हैं तो पार्टी में सबसे बड़े नेता के रूप में उभरेगें और यदि चुनाव हार जाते हैं तो यह उनकी राजनीति की आखिरी पारी होगी।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)