- रहस्यमय स्थितियों में वाराणसी में अपने घर में मृत पाए गए
- राजीव के निधन पर उनके साथ खेले हॉकी इंडिया अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने दुख जताया
- 1997 में राजीव मिश्रा, दिलीप टिर्की और बलजीत सैनी जूनियर वल्र्ड इलेवन में चुने गए
- भारत के लिए खेले हर मैच में राजीव मिश्रा ने किया गोल
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : 1997 में मिल्टन कींस में जूनियर हॉकी विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया से फाइनल में 2-3 से हार कर उपविजेता रही भारतीय टीम के ‘हॉकी कलाकारÓ राजीव मिश्रा नहीं रहे। उत्तर रेलवे में कार्यरत राजीव मिश्रा रहस्यमय हालात में वारणसी के सरसौली इलाके में अपने घर में मृत पाए गए। वह 46 बरस के थे। राजीव मिश्रा उत्तर रेलवे के लखनउ डिवीजन में वाराणसी में चीफ इंस्पैक्टर टिकट (सीआईटी) के पद पर कार्यरत थे। बताया यही गया है कि उनका वाराणसी में कुछ दिन पहले ही निधन हो गया लेकिन इस बाबत पता दो दिन उनके फ्लैट से पड़ोसियों को बदबू आने पर चल पाया। राजीव तीन भाईयों में छोटे और जुड़वां थे। राजीव को उनके बड़े भाई भूषण ने कोलकाता में बहुत अभावों में पाला। राजीव मिश्रा के बचपन के हॉकी उस्ताद प्रेम शंकर शुक्ला ने बताया कि राजीव मिश्रा का वाराणसी में शुक्रवार को हरीशचंद्र विद्युत शव दाह गृह में अंतिम संस्कार कर दिया गया। राजीव मिश्रा के परिवार में उनकी पत्नी, 15 बरस की बेटी और सात बरस का बेटा है। 1997 के जूनियर हॉकी विश्व कप में राजीव मिश्रा ने भारत के लिए सबसे ज्यादा नौ गोल किए थे और गोल दागने में जापान के तोबित नाओहिको(कुल दस गोल) के बाद दूसरे नंबर पर रहे। राजीव मिश्रा के हॉकी उस्ताद प्रेम शंकर शुक्ला बताते हैं, ‘ राजीव मिश्रा को एस्ट्रो टर्फ पर उनके हॉकी की कलाकारी को देख कर तब हॉकी के धुरंधर पत्रकारों ने उन्हें ‘एस्ट्रो टर्फ के सचिन तेंडुलकरÓ का खिताब दिया था। राजीव मिश्रा ने मुझे खुद बताया कि सर मैंने भारत के लिए लगभग हर मैच में गोल किया। मैने राजीव मिश्रा के घुटने के इलाज के लिए बराबर तत्कालीन अब भंग आईएचएफ को चिट्टिïयां लिखीं लेकिन उसने एक का जवाब नही दिया। यदि आईएचएफ ने राजीव मिश्रा का सही वक्त पर सही इलाज कराया होता तो उनका घुटना ठीक हो सकता था और शायद तब वह भारत के लिए आगे न खेल पाने की निराशा में शराब में न डूबते। तब बहुत मुमकिन था राजीव मिश्रा भारतीय हॉकी की एक कम से कम दस-बारह बरस जरूर सेवा करते। मुझे इस बात का जरूर मलाल रहेगा कि आईएचएफ की अनदेखी के चलते भारत ने राजीव मिश्रा के असमय हॉकी का बड़ा और नायाब कलाकार खो दिया।Ó
एक दिलचस्प बात यह है कि राजीव मिश्रा ने 1997 के जूनियर हॉकी विश्व कप में भारत के लिए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फाइनल को छोड़ कर पूल मैच और सेमीफाइनल तक हर मैच में गोल किया। राजीव मिश्रा ने भारत के लिए सेमीफाइनल सहित जिन छह मैचों में गोल किए सभी में भारत अजेय रहा। सच तो यह राजीव मिश्रा को कभी भारतीय हॉकी में धनराज पिल्लै का ‘वारिसÓ बताया गया था। हकीकत तो यह है कि अपनी हॉकी की कलाकारी के साथ डी में अपनी बेहतरीन फिनिशिंग के कारण वह धनराज पिल्लै से भी दो कदम आगे ही थे।
हॉकी इंडिया के मौजूदा अध्यक्ष पूर्व ओलंपियन दिलीप टिर्की भी राजीव मिश्रा के साथ मिल्टन कींस में जूनियर हॉकी विश्व कप में उपविजेता रही टीम में खेले थे। दिलीप टिर्की ने अपने पूर्व साथी हॉकी खिलाड़ी राजीव मिश्रा के असमय निधन पर दुख जताया है। दिलीप टिर्की ने कहा, ‘ 1997 के मिल्टन कींस में जूनियर हॉकी विश्व कप में उपविजेता भारतीय जूनियर हॉकी में हम तीन-राजीव मिश्रा, बलजीत सिंह सैनी और मैं ही तब जूनियर वल्र्ड इलेवन में चुने गए थे। राजीव की बतौर स्ट्राइकर रफ्तार तो गजब की थी उनके हॉकी की कलाकारी का तब कोई सानी नहीं था।’
पटियाला में अभ्यास के दौरान असमय घुटने में लगी चोट से राजीव मिश्रा जैसे बेहतरीन हॉकी स्ट्राइकर का करियर असमय खत्म हो गया। राजीव को घुटने में चोट नहीं लगी होती तो वह बेशक इस भारतीय हॉकी की बेहतरीन हॉकी स्ट्राइकर में से एक होते। राजीव मिश्रा को पटियाला में अभ्यास के दौरान घुटने में लगी चोट के बाद उनके संस्थान उत्तर रेलवे के तत्कालीन हॉकी उस्तादों ने खेलने को मजबूर किया और इससे उनकी घुटने की चोट बद से बदतर होती चली गई। 1980 में मास्को में आठवीं और अंतिम बाद ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे वासुदेवन भास्करन के कोच रहते 1997 में भारतीय जूनियर टीम ने पहली बार जूनियर पुरुष हॉकी विश्व कप के फाइनल में स्थान बनाया था। 1997 में भारत के जूनियर हॉकी विश्व कप के फाइनल तक के सफर में राजीव मिश्रा ने नौ गोल कर अहम भूमिका निभाई थी और तब दिलीप टिर्की, लाजरस बारला और समीर दाद जैसे बेहतरीन खिलाड़ी भी टीम का हिस्सा थे। राजीव मिश्रा हॉकी के बेहतरीन कलाकार होने के साथ भीड़ से अलग बेहतरीन फिनिशर थे।
राजीव मिश्रा अपनी हॉकी की कलाकारी, घुंघराले बालों को सिर पर खास अंदाज में पट्टïी से बांधे रहने के कारण अलग ही नजर आते है। राजीव मिश्रा का जन्म बिहार के हाजीपुर के लिलूदाबेत गांव में हुआ। उनका पिता काम की तलाश में कोलकाता में जा बसे। राजीव मिश्रा ने बहुत कम उम्र में पिता को खो दिया। तब कोलकाता में उनके बड़े भाई भूषण ने उन सहित पूरे परिवार को पाला। जब राजीव मिश्रा 13 बरस के थे तब हॉकी के आशु कवि और साई के हॉकी उस्ताद प्रेम शंकर शुक्ला उन्हें कोलकाता के एंटली एथलेटिक्स क्लब के हेड कोच असीम गांगुली के आग्रह पर कोलकाता से वाराणसी ले आए और उनका दाखिला साई हॉस्टल, वाराणसी में करा दिया । देखते ही देखते राजीव मिश्रा ने अपने हॉकी कलाकारी से बहुत जल्द अपना एक अलग नाम बना लिया। प्रेम शंकर शुक्ला ही नहीं हॉकी के मुरीदों को 1997 के जूनियर पुरुष हॉकी विश्व कप में राजीव मिश्रा का जर्मनी के खिलाफ गोता लगाकर दागा गोल आज भी रहा।
राजीव मिश्रा को शायद खुद की नजर लग गई। राजीव मिश्रा ने बतौर जूनियर हॉकी खिलाड़ी भारत के लिए जितनी तेजी से बुलंदियां चूमी 1998 में उत्रेक्त(नीदरलैंड) में सीनियर हॉकी विश्व कप से पहले वह गोलरक्षक एबी सुबैया से टकरा कर घुटने में गंभीर चोट खा बैठे। तब हॉकी के आकाओ और खासतौर पर उत्तर रेलवे हॉकी उस्तादों का चोट के बावजूद राजीव मिश्रा को अपने संस्थान के खेलने को मजबूर करना उन्हें और भारतीय हॉकी को बेहद महंगा पड़ा। इसी निराशा में राजीव मिश्रा को ‘शराब’ में सहारा नजर आया और इसके इतने आदि हो गए शराब में खो गए। चोट के कारण हॉकी न खेल पाने की निराशा ने ही उन्हें शराब का आदि बना दिया। यही अंतत: बहुत कम उम्र में राजीव मिश्रा की मौत का कारण बना। प्रेम शंकर शुक्ला कहते हैं, ‘ ‘तत्कालीन आईएचएफ ने मुश्किल घड़ी में राजीव मिश्रा को एकदम अकेला छोड़ गया और कभी उनके इलाज की सुध नहीं ली। इससे राजीव मिश्रा गुमनामी में खो गए। वक्त के इन्हीं थपेड़ों में भारत ने असमय राजीव मिश्रा के रूप में एक चमकता हॉकी सितारा खो दिया।