बेहाल बीएसएनएल को दूरसंचार विभाग ने धीरे से दिया जोर का झटका

  • गाज़ियाबाद स्थित एल्ट सेंटर की बेश कीमती संपत्ति को हस्तांतरित करने के लिए जारी डीओटी का आदेश तत्कालीन कैबिनेट के निर्णय का खुला उल्लंघन।
  • आगामी संसदीय चुनाव और शीतकालीन संसदीय सत्र के मौके पर डीओटी का आदेश विपक्ष के लिए बन सकता है मुद्दा।
  • विपक्षी नेताओं को सरकार पर हमलावर होने का मुद्दा देने के पीछे की मंशा की कराई जाए जांच।

कर्मवीर सिंह नागर
चैयरमैन
एस एन ई ए (उ प्र प)

डीओटी के अधिकारियों ने बैठे-बिठाए विपक्षी नेताओं को सरकार पर हमलावर होने का एक नया मुद्दा दे दिया है। जहां एक तरफ सरकार रिवाइवल पैकेज देकर बीएसएनएल को उबारने का प्रयास कर रही है वहीं दूसरी तरफ भारत सरकार का दूरसंचार विभाग बीएसएनल को खोखला करने पर उतारू है। बीएसएनएल के कंपनी बनने के बाद से नीति निर्माताओं की खराब नीतियों की वजह से एक अच्छी खासी मुनाफा देने वाली कंपनी आज जबरदस्त घाटे से गुजर रही है। समझ से परे का विषय है कि आखिर खराब आर्थिक हालातों से जूझ रहे बीएसएनएल को नीति निर्माताओं की मार कब तक झेलनी पड़ेगी। इन नीति निर्माताओं की वजह से ही बीएसएनएल को इंफ्रा और नई तकनीक से लैस करने में जान पूछ कर देरी की जाती रही है और निजी कंपनियों को टेलीकॉम बाजार पर कब्जा करने के लिए पूरा मौका दिया जाता रहा है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि बीएसएनएल को खराब हालत में लाकर खड़े करने के पीछे नीति निर्माताओं की एक सोची समझी चाल रही है। भले ही इसका दोष अधिकारी और कर्मचारियों पर मंढा जाता रहा हो। इसी वजह से केंद्र सरकार द्वारा बीएसएनएल को दो बार रिवाइवल पैकेज देने के बाद भी आर्थिक स्थिति में कोई खासा सुधार नहीं हो पाया है। क्योंकि जहां निजी टेलीकॉम कंपनी 5G का इंस्टालेशन कर रही है वहीं बीएसएनएल 4G की लड़ाई लड़ रहा है। इन सब के अतिरिक्त अब बीएसएनएल की परिसंपत्तियों को कब्जा कर रीढ तोड़ने की नई शुरुआत भारत सरकार के दूरसंचार विभाग द्वारा शुरू की गई है। इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए दूरसंचार विभाग द्वारा गाजियाबाद स्थित देश के अति प्रतिष्ठित संस्थान एल्ट सेंटर को बीएसएनएल से अपने कब्जे में लेने के लिए तानाशाही भरा फरमान जारी किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि अक्टूबर 2000 में बीएसएनएल कंपनी के गठन के समय सभी संपत्तियां बीएसएनएल को हस्तांतरित किए जाने का निर्णय कैबिनेट में लिया गया था। हालांकि केंद्र सरकार की कैबिनेट के इस निर्णय का खुला उल्लंघन करते हुए विगत 23 वर्षों में दूरसंचार विभाग द्वारा कई परिसंपत्तियों को मनमाने तरीके से अपने कब्जे में लिया जा चुका है। इसी कड़ी में दूरसंचार विभाग द्वारा विगत वर्ष गाजियाबाद स्थित एएलटीटीसी की बेश कीमती 81 एकड़ भूमि और आलीशान इमारत को अधिग्रहण करने का आदेश जारी किया गया था जिसका पुरजोर विरोध करने पर दूर संचार विभाग बैक फुट पर आ गया था। लेकिन डीओटी द्वारा आक्रांताओं की भांति एक बार फिर बीएसएनएल पर कुठाराघात करते हुए एल्ट सेंटर की बेश कीमती प्रॉपर्टी को कब्जाने के लिए दिनांक 10 नवंबर 2023 को फरमान जारी किया गया है। जिसका बीएसएनएल के सभी अधिकारी कर्मचारी और संगठन पुरजोर विरोध कर रहे हैं। यह सब बीएसएनएल की आर्थिक रीढ को तोड़ने के लिए सोची समझी चाल है। जब कि दूसरी तरफ केंद्रीय संचार मंत्री बीएसएनएल को उबारने के लिए भरसक प्रयत्न करते नजर आ रहे हैं। अगर वाकई सरकार की मंशा बीएसएनएल की आर्थिक स्थिति को सुधारने की है तो सरकार को दखल देते हुए डीओटी की तानाशाही पर लगाम लगानी होगी और सभी संपत्तियों को बीएसएनएल को हस्तांतरित करने का आदेश पारित करना होगा। दूरसंचार विभाग की खराब नीतियों की का दंश झेल रहे बीएसएनएल को अगर वाकई सरकार उबरना चाहती है तो कंपनी के हित में पॉलिसी बनानी होगी और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का इंफ्रा उपलब्ध कराना होगा। जिस तरह देश की सीमा पर आधुनिकतम हथियारों के बगैर सीमा की सुरक्षा संभव नहीं है इसी तरह प्रतिस्पर्धा के इस युग में आधुनिकतम टेक्नोलॉजी के बगैर बीएसएनएल को उबार पाना कोरी कल्पना नजर आ रही है। बीएसएनएल को उस बानरराज जैसी कार्यशैली और दिखावा करने की जरूरत नहीं है जो एक डाल से दूसरी डाल, दूसरी डाल से तीसरी डाल पर उछल कूद करके संतुष्ट करना चाहता था। अगर वास्तव में बीएसएनएल के आर्थिक हालातों को सुधारना है तो डीओटी जैसे आक्रांताओं से संपत्तियां बचानी होंगी और आधुनिकतम तकनीक का इंफ्रा उपलब्ध कराना होगा।

बीएसएनएल के इन्हीं मुद्दों को लेकर पहले भी विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा भी सत्ता पक्ष और सरकार को बार-बार कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जाता रहा है लेकिन वर्तमान स्थिति में जब सन् 2024 के आगामी संसदीय चुनाव नजदीक हैं और शीतकालीन संसदीय सत्र 28 दिसंबर 2030 से प्रारंभ होने वाला है ऐसे समय पर डीओटी द्वारा एल्ट सेंटर को अधिग्रहित करने के फरमान ने विपक्षी दलों को केंद्र सरकार और सत्ता पक्ष पर हमलावर होने का मुद्दा दे दिया है। क्योंकि इससे पहले भी विपक्षी नेता सरकार पर बीएसएनएल को बेचने की तोहमत लगा कर आक्रामक नजर आते रहे हैं। ऐसे वक्त पर अल्ट सेंटर को अधिग्रहित करने के आदेश करने वालों की मंशा की भी जांच कराई जानी चाहिए जो सरकार को असहज स्थिति में पहुंचाने का काम कर रहे हैं। डीओटी के इस तानाशाही रवैये से बीएसएनएल के सभी संगठन भी इन फरमानों के विरोध में पूरी तरह से लामबन्द होते नजर आ रहे हैं। इस आदेश के विरोध में बीएसएनएल के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा ट्विटर कैंपेन भी चलाया जा रहा है। अगर डीओटी द्वारा जारी आदेशों को निरस्त नहीं किया गया तो इसका विरोध करने के लिए बीएसएनएल की अधिकारी और कर्मचारी सड़कों पर उतर सकते हैं।