विनोद तकियावाला
मोदी सरकार के द्वितीय काल अपनेअन्तिम चरण में है। केन्द्र सरकार नें संसद में अन्तरिम बजट पेश कर दिया है।इस अन्तरिम बजट ने युवाओं, महिलाओं,अन्नदाताओं,गरीबों व पूरे देश के निराश किया ‘ आर्थिक मामले के विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार द्वारा पेस किये गए इस अन्तरिम बजट से केवल कॉरपोरेट जगत के मुनाफे के लिए तैयार किया गया है वही इसके लिए कॄषि बजट, सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में व शिक्षा का बजट घटाया गया है। राजनीतिज्ञ पंडितओं का मानना है कि इन दिनोंलोक सभा चुनाव के तैयारियाँ चल रही है।सता पक्ष-विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों नें सता के सिंधासन पर काबिज होने के रण नीति बनाने व्यस्त है।राजनीति के शतरंज के खेल में पासे सज गए है।विपक्षी दल गठबन्धन के नाम पर चुनावों मे सीटो के बॅटवारे को लेकर ताल ठोक दिया है,वही सता पक्ष विपक्ष के नेताओं को अपनी खेमें शामिल कर रही है।विगत दिनों बिहार में नीतीश कुमार को अपने पक्ष में लाकर सता की कुर्शी पर आसीन हो गई।झारखण्ड में हेमन्त सोरेन की गिफ्तारी व चंपई सोरेन को मुख्य मंत्री पद की सपथ दिलाने राज्यपाल की भुमिका पर सवाल उठाए गए है।राजनीति के बदलते घटना क्रम में संसद का विशेष सत्र 31जनवरी 9 फरवरी तक बुलाई है।राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद मोदी सरकार द्वितीय काल का अन्तरिम बजट लोक सभा में पेस किया जा चुक्रा है। अन्तरिम बजट में युवाओं,महिलाओं,अन्नदाताओं, गरीबों व पूरे देश के निराश किया ‘यह अन्तरिम बजट केवल अपने कॉरपोरेट मित्रों के मुनाफे के लिए कॄषि बजट,सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में व शिक्षा का बजट घटाया गया है।विगत दिनों संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट ने देश के आम नागरिकों को एक बार फिर निराश किया।एन डी ए की नेतृत्व में केन्द्र में भाजपा व गठबन्धन की सरकार ने बेरोजगारी,महंगाई,गरीबी की मार झेल रही आम जनता मोदी सरकार से कुछ राहत की उम्मीद लगाए बैठी थी,वहीं मोदी सरकार दुसरे कार्यकाल के इसआखिरी बजट ने देश केयुवाओं,महिलाओं, अन्नदाताओं,गरीबों व देश के साथ एक बार फिर धोखा किया।पिछले पांच वर्षों की तरह,इस साल भी कृषि बजट साल में कटौती की गई।देश के कुल बजट के अनुपात के रूप में कृषि बजट आवंटन पिछले वर्ष के 3.20%(बजट अनुमान)और 3.13%(संशोधित अनुमान)से घट कर इस साल 3.08(बजटअनुमान)रह गया।सर्व विदित रहे कि सन 2019 में यह आवंटन 5.44% था।वहीं,2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात पर मोदी सरकार द्वारा एक बार फिर चुप्पी साध गई।देश में कृषि के संकट पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया जबकि इस साल कृषि विकास दर सिर्फ़ 1.8% रह गई है।न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी)की गारंटीके बारे में जिक्र तक नहीं किया गया है।पिछले वर्ष कृषि त्वरक कोष (एक्सीलेरेटर फंड)के जरिए 2516 करोड़ के निवेश का वादा किया गया था,जिसमें अब तक सिर्फ़ 106 करोड़ खर्च किए गए।सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में कटौती की गई।बजट अनुमान 55,050 करोड़ था,जो संशोधित अनुमान में 46,741 करोड़ रह गया।ग़रीबी रेखा की परिभाषा ही बदल कर गरीबी खत्म करने का झूठ परोसा गया।गरीबी दर मापने के लिए एनएसएस के घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण को पिछले दस वर्षों से नहीं करवाया गया।सरकार की कुल टैक्स आमदनी में अप्रत्यक्ष टैक्स यूपीए के जमाने में 25% होता था जो मोदी सरकार में अब बढ़कर 45% हो गया है।इसका बोझ गरीबों पर पड़ेगा।वित्तमंत्री के बजट भाषण में देश में बेरोज़गारी की भीषण समस्या के बारे मे कोई जिक्र नहीं किया गया।मोदी सरकार का करोड़ों रोज़गार देने का जुमाला पुनः एक बार फिर से दोहराया गया।वही हम शिक्षा बजट की बात करें तो जो शिक्षा का बजट जो 2019-20 में बजट का 3.33% होता था,वह पिछले साल 2.51% तक गिर गया,वहीं संशोधित अनुमान में खर्च केवल 2.42% ही रह गया।एक लाख करोड़ रुपए के फण्ड की घोषणा की गई लेकिन उसके लिए बजट में कोई मद तक निर्धारित नहीं की गई।“मिशन शक्ति” एक जुमला बनकर रह गया है चूंकि पिछले साल 3144 करोड़ टी बी के बजट अनुमान की तुलना में वास्तविक खर्च 2326 करोड़ (संशोधित अनुमान) ही हुआ। नारी सुरक्षा पर बजट की कटौती की गई।पिछले साल खर्च (संशोधित अनुमान)1008 करोड़ हुआ जबकि इस साल (बजट अनुमान) मात्र 955 करोड़ का है। “लखपति दीदी” का लक्ष्य बढ़ाकर 2 से 3 करोड़ घोषित कर दिया,लेकिन इस यथार्थ के घरातल पर लागु करने लिए इस बजट में जिक्र तक नहीं है।
वित्तमंत्री र्निमला सीतारमण ने देश के व्यक्ति की औसत वास्तविक आय में 50% बढ़ोतरी का झूठ बोला।उपरोक्त आंकड़े गहन अध्यन से स्पष्ट होता है कि पिछले 5 वर्षों में मजदूरी और स्वरोजगार की आय में गिरावट आई है।वित्तीय अनुशासन के तमाम दावों के बावजूद बजट का घाटा काबू में नहीं आ रहा।बजट घाटे का औसत यु पी ए के कार्यकाल में 4.63% था,जो भाजपा के कार्यकाल में 5.13% हो गया है।जो इस वर्ष 5.8% तक पहुंच गया।वही वित्त मंत्री द्वारा देश पर दिन प्रति दिन बढ़ते कर्ज़ को भी देश की नागरिकों से छुपाया गया है।आई एम ए .फ (IMF) के अनुसार जीडीपी के अनुपात में कर्ज 81% हो गया है,जो 2027 तक 100% होने की संभावना है।
पिछले पांच वर्ष के मोदी सरकार के कार्यकाल में सरकार ने अगर किसी एक वर्ग के लिए काम किया है तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कॉर्पोरेट मित्र है। उन्होने वर्ष 2019 के बजट में ही कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती की गई थी।दावा यह किया जा रहा था कि इससे प्राइवेट निवेश बढ़ेगा,जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ।यूपीए सरकार के दौरान सरकार की कुल टैक्स कमाई का 40% कॉर्पोरेट टैक्स से आता था जो कि मोदी सरकार अब घटकर 27% रह गया है।यह अंतरिम बजट पिछले 5 साल से मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों का ही एक और आईना है।इसका जवाब देने के लिए देश जनता को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह बीजेपी और मोदी सरकार का अंतिम बजट होगा या पुनः मोदी सरकार को पुनः अपना भाग्य विधाता मानते हुए केन्द्र की सता के सिंधासन पर आसीन कर अपने को भाग्य विधाता पर छोड दे!