दक्षिण अफ़्रीका की संसद के लिए हुए हालिया चुनाव में भारतीय मूल के बहुत से उम्मीदवार विभिन्न राजनीतिक दलों से अपना भाग्य आजमा रहे थे। उनमें से कईयों ने संसद और प्रांतीय असेंबलियों में जीत भी दर्ज की। इस विशेष आलेख में दक्षिण अफ्रीका के आम चुनावों में भारतवंशियों के शानदार प्रदर्शन और भारत के अफ्रीका देशों से संबंधों पर चर्चा।
आर.के. सिन्हा
भारत के लोकसभा चुनावों के नतीजे बीती 4 जून को आए और दक्षिण अफ्रीका के उससे मात्र दो दिन पहले 2 जून को। दोनों देशों में मिली-जुली सरकारें बन गई हैं। दक्षिण अफ्रीका से भारत सिर्फ इसलिए ही अपने को भावनात्मक रूप से जोड़कर नहीं देखता है, क्योंकि वहां लगभग 21 सालों तक गांधी जी रहे। वहां रहकर उन्होंने भारतवंशियों और बहुसंख्यक अश्वेत आबादी के हक में लड़ाई लड़ी। दक्षिण अफ्रीका भारत के लिए इसलिए भी विशेष है, क्योंकि वहां पर करीब 15-16 लाख भारतवंशी बसे हुए हैं। संसार के शायद ही किसी अन्य देश में इतने भारतवंशी हों। दक्षिण अफ्रीका में भारत मूल के लोग जीवन के हर क्षेत्र में अपनी ठोस उपस्थिति दर्जा करा रहे हैं।
दक्षिण अफ़्रीका की संसद के लिए हुए हालिया चुनाव में भारतीय मूल के बहुत से उम्मीदवार विभिन्न राजनीतिक दलों से अपना भाग्य आजमा रहे थे। उन्होंने संसद और प्रांतीय असेबलियों में भी जीत दर्ज की। मेरगन शेट्टी लगातार तीसरी बार संसद के लिए चुने गए। क्वाज़ुलू-नाटाल प्रांतीय विधानसभा की सदस्य शारा सिंह ने राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया और संसद सदस्य बन गईं। शेट्टी संसद में डेमोक्रेटिक एलायंस (डीए) के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले भारतीय मूल के सदस्य बताए जाते है। उन्होंने पहले 2006 में पीटरमारिट्ज़बर्ग नगर परिषद का प्रतिनिधित्व किया था। शारा सिंह ने संसद में चुने जाने के बाद स्थानीय सरकार की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। डीए के संसद के लिए 87 सदस्य चुने गए हैं। इनमें से चार भारतीय मूल के हैं। इस बीच, ए. सरूपेन ने लगातार दूसरी बार संसद के चुनाव में जीत हासिल की। सरूपेन के पूर्वज उत्तर प्रदेश से थे। वे गौतेंग प्रांतीय विधानसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य कर चुके हैं।
इंकथा फ्रीडम पार्टी के नेता नरेंद्र सिंह, अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) की फ़ासीहा हसन, अल जमा-आह के इमरान इस्माइल मूसा भी निर्वाचित हुए हैं। इनके अलावा, गोपाल रेड्डी और शुनमुगम रामसामी मूडली भी संसद पहुँचे हैं। अधिकांश चुने गए भारतीय मूल के सदस्य दक्षिण अफ़्रीका में ही पैदा हुए हैं, लेकिन केरल के पथानमथिट्टा जिले के तिरुवल्ला के मूल निवासी अनिलकुमार केसवा पिल्लई ने 40 साल पहले दक्षिण अफ्रीका की स्थानीय राजनीति में खुद को स्थापित किया था। एक युवा शिक्षक के रूप में दक्षिण अफ़्रीका पहुँचे पिल्लई शिक्षकों के एक ट्रेड यूनियन नेता के रूप में उभरे। उन्हें पहली बार 2019 में एएनसी के प्रतिनिधि के रूप में ईस्टर्न केप की प्रांतीय परिषद के लिए चुना गया था। पिल्लई के अलावा, डीए के सदस्य इमरान कीका, एम. नायर और रिओना गोकुल को भी क्वाज़ुलू-नाटाल की प्रांतीय विधानसभा के लिए फिर से चुना गया है।
इस बीच, दक्षिण अफ़्रीका के फिर से राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा बन गए हैं। रामाफोसा ने अफ़्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (एएनसी), डेमोक्रेटिक एलायंस (डीए) और अन्य दलों के समर्थन से फिर से राष्ट्रपति पद को संभाला।यह पहली बार है जब 1994 के बाद नेल्सन मंडेला की पार्टी एएनसी बहुमत हासिल करने में विफल रहा। दक्षिण अफ़्रीका कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, जिसमें दुनिया के सबसे उच्च स्तर की बेरोजगारी, असमानता और हिंसक अपराध शामिल हैं।
एएनसी ने 1994 में श्वेत अल्पसंख्यक शासन की रंगभेद व्यवस्था के अंत के बाद से दक्षिण अफ़्रीका पर बहुमत के साथ शासन किया। लेकिन इस बार के चुनाव में 30 साल के बहुमत को खोने से देश में एक बड़ा बदलाव आया। यह चुनाव गरीबी, असमानता और बेरोजगारी के उच्च स्तर को लेकर दक्षिण अफ्रीकियों में व्यापक असंतोष की पृष्ठभूमि में हुआ।
खैर, भारत दक्षिण अफ्रीका समेत सभी अफ्रीकी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने का इच्छुक रहा है। कुछ साल पहले राजधानी में हुए भारत-अफ्रीका समिट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया। उन्होंने भारत अफ्रीका के रिश्तों पर जोर देते हुए कहा था कि भारत और अफ्रीका की युवा होती आबादी पूरे विश्व में नए कीर्तिमान बना सकती है। उन्होंने कहा कि अफ्रीका में निवेश के लिए भारत एक बड़ा स्रोत है। तब भारत ने अफ्रीकी देशों के लिए 600 मिलियन डॉलर की मदद की घोषणा की थी। मौजूदा दौर में अफ्रीका के कई देश तेजी से आर्थिक विकास कर रहे हैं। अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ भी अफ्रीका में संभावनाए तलाशता रहा है। कारोबारी रिश्ते में भारत अभी इन सभी से पीछे है। ऐसे वक्त में जब कि चीन की अर्थव्यवस्था उतार पर है। यूरोप भी संकट से जूझ रहा है। इस पृष्ठभूमि में भारत के पास अफ्रीका के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने का बेहतरीन मौका है।
भारत की चोटी की कंपनियों जैसे टाटा, भारती, महिन्द्रा, अशोक लीलैंड वगैरह का अफ्रीका में तगड़ा निवेश है। अफ्रीका में हर जगह टाटा की उपस्थिति दिखती है। भारती एयरटेल ने अफीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में अरबो डॉलर का निवेश किया हुआ है। भारतीय कंपनियों ने कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी गहरी रुचि जताई है। दूसरी ओर अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन व होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं। अफ्रीकी देश नाइजीरिया भारत को बड़े पैमाने पर तेल की आपूर्ति करता है।
इस बीच, अफ्रीका से राजधानी दिल्ली में आने नागरिकों को यहां अफ्रीका के बहुत सारे प्रतीक मिलेंगे। राजधानी के चाणक्यपुरी में घाना के शिखर नेता क्वामे नकरूमा मार्ग के नाम पर एक सड़क है। इसके करीब ही अफ्रीका गॉर्डन है। अफ्रीका एवेन्यू भी है। यह संयोग ही है कि निर्गुट आंदोलन के नेता क्वामें नकरूमा मार्ग और अफ्रीका गार्डन इतने करीब हैं। इंडिया अफ्रीका फ्रेंडशिप रोज गॉर्डन को अब अफ्रीका गॉर्डन कहा जाने लगा है। जैसे कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यहां गुलाब ही गुलाब हैं। यहां गुलाब के लाल,पिंक,सफेद समेत साढ़े पांच हजार से अधिक पौधों की 65 प्रजातियां खुशबू बिखेरती हैं। इधर का सारा वातावरण बेहद सुंदर और आनंद की अनुभूति देता है। दिल्ली में अफ्रीका नाम से किसी उद्यान का होना एक तरह से यहां पर रहने वाले अफ्रीकी नागरिकों को कुछ भरोसा तो दिलाता होगा कि भारत उनका मित्र है। वैसे राजधानी में नेल्सन मंडेला और मिस्र के जननायक गमाल आब्देल नासेर के नामों पर भी सड़कें हैं। क्वामें नक्ऱूमा की तरह नासेर भी निर्गुट आंदोलन के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। देखा जाए तो दिल्ली का अफ्रीका से रिश्ता सन 1955 में कायदे से बना था। तब दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में डिपार्टमेंट आफ अफ्रीकन स्टडीज की स्थापना हुई थी। उसी दौर में यहां विभिन्न अफ्रीकी देशों के नौजवान पढ़ने के लिए आने लगे। उनमें केन्या से आने वाले सर्वाधिक रहते थे। उन्होंने डीयू में अपने देश के नायक जुमो कैन्यटा के नाम से एक फुटबॉल प्रतियोगिता भी चालू की। उसमें सिर्फ अफ्रीकी देशों के छात्र ही भाग लेते थे, पर दर्शक सब होते थे। इसी डीयू के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स और दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स के छात्र रहे अफ्रीकी देश मलावी के राष्ट्रपति बिंगु वा मुथारिका भी।
अतः ऐसा लगता है कि मोदी जी तीसरे प्रधान्मत्रित्व काल की भारत सरकार दक्षिण अफ्रीका तथा अन्य सभी अफ़्रीकी देशों से सम्बन्ध और मजबूत और स्थायी करेगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)