प्रभुनाथ शुक्ल
बादल पूर्वांचल में खिसियाइल बा। सूरज आ बादल के बेमेल गठबंधन सावन आ किसानन के सत्ता के हिला दिहले बा। एक ओर जहां किसान के चेहरा प हवाई उडत बा ऊहीं खेत में झुर्री अवुरी जमीन में भारी दरार देखाई देता। सावन के हालत खराब बा खेत आ खलिहान में हरियाली गायब बा। पूरब के हवा के साथे धूल उड़ रहल बा। धान के फसल सूख गइल बा। धरती पर कवनो हरियाली नइखे। हर जगह सूखल आ सूखल लउकत बा। अलहान सावन कुंवार जइसन बूढ़ हो गइल बा। हाथ में लाठी डाल के आपन आखिरी साँस गिनत बा। सावन जइसे बेमार हो गइल होखे। अबकी बेर बादल के कोहाने के चलते पूर्वांचल में सावन खातिर एगो अजीब स्थिति पैदा हो गईल बा।
पूर्वांचल में बादल आ सूरज के गठबंधन के चलते धरती आ मानसून के पूरा वैभव गायब हो गइल बा। नदी, पोखरा, ताल, तलैइया सब सूखल बा। कहीं पानी के एको बूंद ना लउकेला। सबके दिल जरत बा बाकि प्यास के केहू ना बुझा पावत बा। हर जगह विरह के गीत बा। सुखू, कालू, रामू आ बलिराम काका के हालत खराब बा। खेत में धान के फसल सूख गइल बा जइसे पेट में हेका पड़ल होखे। खेत में पडल धान के फसल दिन रात मेघा हे मेघा, पानी दे दऽ, पानी दे दऽ करत बा। सावन, धान, किसान सब पानी खातिर रोवत बाड़े। बाकि बादल, सावन आ ओह निर्दोष किसानन पर कवनो ध्यान नइखे देत। जइसे नवविवाहित दुलहिन केहु के कवनो इज्जत ना देखावेले, ओसही हालत एह बादल के भी भईल बा।
बेचारा सावन अइसन उदास बा जइसे ओकर प्रियतम बादल रेगिस्तान में बस गइल बा आ एकदम सुस्त हो गइल। ऊ सावन के हताशा के ना समझत होखे। गाँव में झूला ना लउकत बा। सूरज एतना आग उगलत बा कि जेठ के नवतपा के हरा दिहले बा। जबकि बेचारा सावन बरखा में भीज जाए खातिर बेताब बा, लेकिन ओकर प्रेमी बादल ओकरा हताशा के समझत नइखे।सावन, बरखा में भीजला के बजाय पसीना से भींजल बा। चकबेनिया झूलत-झूलत ऊ थक गइल बा। पूरा देह आ माथे से पसीना टपक रहल बा। इहे बा ! पिया-पिया बकबक करत बाड़ी, बाकि हरजाई बादल उनकर हताशा सुने से परहेज करत बाड़न। उदास आ लाचार सावन पूरब के हवा के माध्यम से आपन दर्द बादल के भेजल चाहत बा, लेकिन जब बेदर्दी बादल ओकर दर्द समझेला त ना।