योगेश कुमार गोयल
भारतीय खिलाड़ी विभिन्न खेल स्पर्धाओं में पिछले कुछ समय से अपने कौशल का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए लगातार सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं। पिछले दिनों बैडमिंटन का दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट ‘थॉमस कप’ जीतकर भारतीय बैडमिंटन खिलाडि़यों ने बैडमिंटन के नए युग की शुरूआत का मार्ग प्रशस्त किया था और अब हाल ही में तुर्की के इस्तांबुल में महिला विश्व चैंपियनशिप में भारत की 25 वर्षीया निकहत जरीन ने 52 किलोग्राग वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर एक फिर साबित किया है कि भारतीय खिलाड़ी अब दुनिया में किसी से कम नहीं हैं। निकहत ने फ्लाईवेट फाइनल में थाईलैंड की प्रतिद्वंद्वी जितपोंग जुटामेंस के खिलाफ शानदार लड़ाई लड़ते हुए अपने ‘गोल्डन पंच’ से मुकाबले में 5-0 के साथ एकतरफा मैच जीता और भारत को बॉक्सिंग में विश्व चैंपियन बना दिया। भारत का विश्व चैंपियनशिप में यह 10वां स्वर्ण पदक है और मैरीकॉम, सरिता देवी, जेनी आरएल तथा लेख केसी के बाद निकहत विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पांचवीं भारतीय महिला बन गई हैं। अब तक सर्वाधिक बार विश्व चैंपियनशिप जीतने का रिकॉर्ड मैरीकॉम के नाम है, जिन्होंने एक नहीं बल्कि कुल छह बार यह चैंपियनशिप जीती है। मैरीकॉम ने 2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018 में खिताब जीते थे जबकि सरिता देवी, जेनी आरएल और लेख केसी ने अपने-अपने भारवर्ग में 2006 की विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते थे।
2018 में मैरीकॉम द्वारा यह चैंपियनशिप जीतने के चार वर्ष बाद भारत स्वर्ण पदक हासिल करने में सफल हुआ है। चैंपियनशिप में भारत की ओर से 12 सदस्यीय टीम ने हिस्सा लिया था और निकहत मुकाबले के दौरान बेहतरीन फॉर्म में थी, जिन्होंने अपने तकनीकी कौशल का इस्तेमाल करते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने के लिए कोर्ट को अच्छी तरह से कवर किया। निकहत ने थाई मुक्केबाज की तुलना में कहीं अधिक मुक्के मारे। हालांकि दूसरे दौर से मुकाबले को जितपोंग जुटामेंस ने 3-2 से जीत लिया था लेकिन फाइनल राउंड में निकहत उस पर इतनी बुरी तरह से भारी पड़ी कि उन्होंने मुकाबला 5-0 से जीतकर पूरी दुनिया को अहसास करा दिया कि उनके मुक्कों में कितना दम है। सेमीफाइनल में भी निकहत ने ब्राजील की कैरोलिन डी अल्मेडा के खिलाफ 5-0 से जीत दर्ज की थी। इस चैंपियनशिप से पहले निकहत ने इसी साल फरवरी में स्ट्रेंडजा मेमोरियल में स्वर्ण पदक जीता था और वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बनी थी।
स्मरण रहे कि निकहत जरीन वही भारतीय बॉक्सर हैं, जो कभी मैरीकॉम को अपना आदर्श मानती थी लेकिन अब वह उन्हीं मैरीकॉम की कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं, जिनके खिलाफ वह अपने हक के लिए लड़ाई भी लड़ चुकी हैं। दरअसल बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीएफआई) का नियम था कि महिला और पुरुष दोनों ही वर्गों में स्वर्ण और रजत पदक विजेता खिलाडि़यों को ही ओलम्पिक क्वालीफायर में भेजा जाएगा। इसी नियम के तहत छह बार की विश्व चैंपियन मैरीकॉम को ओलम्पिक में बिना ट्रायल 51 किलोग्राम भार वर्ग में भारत का प्रतिनिधि बनाया गया था। इसी कारण निकहत को ट्रायल में मैरीकॉम के खिलाफ उतरने भी नहीं दिया गया था। विवाद होने पर तत्कालीन समिति के चेयरमैन का कहना था कि निकहत को भविष्य के लिए सेव कर रहे हैं। हालांकि जब निकहत को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने तत्कालीन खेलमंत्री किरण रिजिुजू को पत्र लिखकर ट्रायल की मांग कर डाली, जिसके बाद मंत्रालय के दखल पर ट्रायल्स हुए लेकिन उसमें मैरीकॉम ने निकहत पर 9-1 से जीत हासिल की लेकिन दोनों के बीच तल्खी उस समय स्पष्ट देखी गई, जब मैच जीतने के बाद मैरीकॉम ने निकहत से हाथ भी नहीं मिलाया।
14 जून 1996 को तेलंगाना के निजामाबाद शहर में जन्मी निकहत जरीन का खेलों की शुरूआत से दुनिया के शीर्ष तक पहुंचने का सफर एक आम लड़की की भांति चुनौतियों और बाधाओं से भरा रहा। उन्होंने कम उम्र में ही एथलेटिक्स से अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी लेकिन अचानक रूझान मुक्केबाजी की ओर हो गया। 13 साल की उम्र में अपने बॉक्सिंग कोच चाचा शमशामुद्दीन के मार्गदर्शन में निकहत ने बॉक्सिंग सीखना शुरू कर दिया। हालांकि निकहत की मां प्रवीण सुल्ताना बेटी की बॉक्सिंग में बढ़ती दिलचस्पी से खुश नहीं थी लेकिन पूर्व फुटबॉलर और क्रिकेटर रहे पिता मुहम्मद जमील अहमद उसे बॉक्सिंग के लिए प्रोत्साहित करते थे। मुस्लिम समाज से होने के कारण रिंग में छोटे कपड़े पहनकर उतरने के कारण उन्हें कुछ लोगों द्वारा अपमानित करने के प्रयास होते रहे और परिवारवालों को भी अक्सर ताने सुनते पड़ते थे लेकिन परिजनों ने इसकी परवाह किए बिना निकहत के अभ्यास और कौशल को निखारने पर ही ध्यान केन्द्रित रखा। पिता के प्रोत्साहन तथा चाचा की ट्रेनिंग के ही चलते निकहत ने धीरे-धीरे सफलता की सीढि़यां चढ़ना शुरू किया और 2011 में टर्की में केवल 14 साल की उम्र में वूमेंस जूनियर एंड यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में तुर्की की बॉक्सर उल्कु डेमिर को हराकर स्वर्ण पदक जीता।
निकहत ने 2014 में बुल्गारिया में यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में रजत पदक और उसी साल रूस में हुए नेशंस कप अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सिंग टूर्नामेंट में पाल्टसिवा इकेटेरिना को हराकर स्वर्ण पदक जीता। 2015 में असम में 16वीं सीनियर वुमेन नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, 2019 में बैंकाक में थाईलैंड ओपन अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सिंग टूर्नामेंट में रजत पदक, उसी वर्ष बुल्गारिया में स्ट्रेंडजा मेमोरियल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक और 2022 में बुल्गारिया में हुए स्ट्रेंडजा मेमोरियल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में बुस नाज केकीरोग्लु को हराकर स्वर्ण पदक जीतने के बाद अब वूमेंस वर्ल्ड चैंपियनशिप में निकहत जरीन के ‘गोल्डन पंच’ भारत के लिए खास हैं। स्ट्रेंडजा मेमोरियल टूर्नामेंट में दो बार स्वर्ण जीतने वाली निकहत पहली भारतीय मुक्केबाज हैं। विश्व चैंपियनशिप जीतने के बाद रिंग की मलिका निकहत की नजरें अब 2024 के पेरिस ओलम्पिक में स्वर्ण पदक पर केन्द्रित हैं। हालांकि माना जा रहा है कि ओलम्पिक के लिए ट्रायल में निकहत का मुकाबला मैरीकॉम से हो सकता है लेकिन निकहत का कहना है कि ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतना अब उसका सपना है और उसके रास्ते में जो भी बाधाएं आएंगी, उन्हें वह पार करेंगी। बहरहाल, निकहत की यह जीत खेलों की दुनिया में आने को बेताब हजारों लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है।
(लेखक 32 वर्षों से साहित्य एवं पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)