प्रदीप शर्मा
पटना में सोमवार को पुलिस ने बेरोजगार शिक्षक कैंडिडेट्स के प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज कर दिया। पटना के ADM केके सिंह ने तिरंगा लिए एक प्रदर्शनकारी पर जमकर लाठी बरसाई। इतनी लाठियां मारीं कि उसका खून बहने लगा। बाद में एक पुलिसकर्मी ने प्रदर्शनकारी से तिरंगा छीन लिया। मामले पर डिप्टी CM तेजस्वी यादव ने कहा है कि ADM को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। जांच का आदेश दिया जा चुका है।
पूरी दुनिया में शायद कहीं ऐसी पुलिस नहीं होगी, जैसी भारत में है। किसी आंदोलन, धरना-प्रदर्शन से निपटने का उसे एक ही तरीका पता है- दमन। यह प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। जहां भी कोई आंदोलन सिर उठाता है, पुलिस अपनी लाठी-बंदूक उठा लेती है। सब जानते हैं कि वहां शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में लंबे समय से टालमटोल का रवैया बना हुआ है। राज्य के वर्तमान उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव जब विपक्ष में थे तो वे यह दावा करते नहीं थकते थे कि अगर उनकी सरकार होगी, तो शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को तत्काल शुरू करेगी, ताकि राज्य की शिक्षा-व्यवस्था बेहतर हो सके।
नई सरकार बनते ही अभ्यर्थी एकजुट होकर अपनी फरियाद सुनाने निकल पड़े। मगर उन्हें फिर वही मिला, जो पहले मिला करता था- लाठी का वार। हद यह कि खुद वहां के एडीएम तिरंगा लिए गिरे पड़े एक युवक को बेरहमी से पीटते रहे। जब इस घटना की तस्वीरें तेजी से प्रसारित होनी शुरू हुइ, तो पहले सरकार ने घटना से अनजान होने की भंगिमा प्रकट की, फिर इसकी जांच के लिए एक समिति गठित कर दी। सरकारों का यह तरीका अब बहुत घिस-पिट चुका है।
सरकार अगर कानून-व्यवस्था को लेकर लोकतांत्रिक तौर-तरीका अपनाना चाहती, तो पुलिस इस तरह मध्ययुगीन बर्बरता का खुला प्रदर्शन नहीं करने पाती। किससे छिपा है कि पुलिस सरकारों की मंशा के अनुरूप काम करती है। अगर सरकार आंदोलनकारी छात्रों-अभ्यर्थियों की समस्या सुनने और उसका समाधान निकालने की इच्छुक होती, तो उनसे बातचीत के लिए अपना कोई प्रतिनिधि भेजती या खुद मंत्री जाते। मगर अब तो सरकारों ने जैसे मान लिया है कि लोगों की आवाज दबाने का एक ही तरीका है दमन। जैसे ही कोई आंदोलन उठे, उसे लाठी-डंडे को बल पर रोक दो।
करीब 5 हजार CTET और BTET पास कैंडिडेट डाक बंगला चौराहे पर प्रदर्शन कर रहे थे। इसी दौरान पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया। पटना DM ने इस मामले में जांच का आदेश दिया है और 2 दिन में रिपोर्ट मांगी है। ये कैंडिडेट्स सातवें चरण की नियुक्ति की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। भारी संख्या में पुलिस फोर्स और वाटर कैनन वहां तैनात थी। कैंडिडेट्स बिहार के नए शिक्षा मंत्री के खिलाफ नारेबाजी भी कर रहे थे। वे सरकार से प्राथमिक विज्ञप्ति जारी करने की मांग कर रहे थे।
आनन-फानन में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव RJD कार्यालय पहुंचे और इस मामले पर सरकार का पक्ष रखा। तेजस्वी यादव ने कहा- आज की घटना शर्मनाक है। ADM को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। शिक्षक अभ्यर्थी राजभवन मार्च कर रहे थे। हमने न्यूज में तस्वीरें देखी हैं। मेरी जिलाधिकारी से बात हुई है। जांच कमेटी बना दी गई है। ADM दोषी पाए गए तो उन्हें सजा मिलेगी।
7वें चरण के नियोजन के लिए विज्ञप्ति जारी करने की मांग को लेकर 5 हजार कैंडिडेट्स ने डाक बंगला चौराहे को चार घंटे तक जाम रखा। अभ्यर्थी विकास ने कहा कि सरकार जल्द से जल्द 7वें चरण की प्राथमिक विज्ञप्ति जारी करे। नए शिक्षा मंत्री के आने से उम्मीद जगी थी, लेकिन ये भी हमें घुमाने लगे। लाठीचार्ज में 28 लोग घायल हुए है। 5 से 6 अभ्यर्थी पीएमसीएच में भर्ती हैं।
बिहार में शिक्षक भर्ती परीक्षा 8 साल बाद हुई थी। नोटिफिकेशन 2019 में जारी किया गया था। जनवरी 2020 में ऑफलाइन मोड में परीक्षा हुई, लेकिन 2-3 सेंटरों पर फर्जीवाड़े की बात सामने आने पर उसे रद्द कर दिया गया। दोबारा परीक्षा सितंबर 2020 में हुई। तब ये ऑनलाइन हुई थी।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि तीन साल से अपॉइंटमेंट का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन शिक्षा मंत्री कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। शिक्षा विभाग हमारी मांग को अनसुनी करता आया है। नई सरकार बनने के बाद हम लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया है। समस्या जब तक नहीं सुलझेगी, हम लोग ऐसे ही प्रदर्शन करते रहेंगे।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इसी तरह टेट परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर छात्र आंदोलन पर उतरे थे और पुलिस ने बेलगाम अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था। उसकी घोर निंदा हुई थी। मगर बिहार पुलिस ने उससे सबक लेना जरूरी नहीं समझा। ठीक वैसा ही बल प्रयोग पटना में किया गया।
दरअसल, हमारी पुलिस के प्रशिक्षण में ही दोष है। उसे आंदोलनकारियों, प्रदर्शनकारियों, उपद्रवी भीड़ आदि से निपटने का सही प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। किसी भी लोकतंत्र में नागरिकों को अपने हक के लिए आवाज उठाने का अधिकार है और उसे सुनना सरकारों का दायित्व। पुलिस को कोई अधिकार नहीं कि इस तरह आंदोलनकारियों पर बल प्रयोग करे। उनके साथ हिंसक व्यवहार करे। अगर कहीं, किसी वजह से भीड़ बेकाबू हो जाए, तो हवा में गोली चलाने, आंसू गैस के गोले दागने, पानी की बौछार करने आदि का नियम है।
लाठी से पीट कर अधमरा कर देने का अधिकार पुलिस को नहीं है। यह अधिकार उसे सरकारें देती हैं। उन्हीं के इशारे पर आंदोलनकारियों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है। इस मामले में बिहार सरकार अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकती। जिस पुलिस अफसर ने अभ्यर्थियों पर लाठियां बरसाई, उसे कठोर दंड मिलना चाहिए और साथ ही पुलिस को स्पष्ट निर्देश होना चाहिए कि किसी भी आंदोलन से निपटने का क्या तरीका होगा। लोकतंत्र लाठी के बल पर जिंदा नहीं रह सकता। दमन के सहारे सरकारें व्यवस्था बनाने का दम बेशक भरती दिखती हों, पर इस तरह उनके पांव भी जल्दी उखड़ जाते हैं।