राजस्थान की सभी 25 सीटों पर चुनाव संपन्न, सांसदों के भाग्य का फैसला भी ईवीएम में बंद

Elections completed on all 25 seats of Rajasthan, fate of MPs also locked in EVMs

राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और विपक्षी दलों की जीत एक मृगतृष्णा साबित होंगी अथवा हकीकत में कामयाबी की सीढ़ी सिद्ध होंगी?

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

देश में भोगौलिक दृष्टि से सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान में शुक्रवार को दूसरे चरण का मतदान होने के साथ ही राज्य की सभी 25 सीटों पर चुनाव संपन्न हो गए हैं और 266 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला ईवीएम मशीनों में बंद हो गया है। इसके साथ ही चुनाव में उतरे सात विधायकों और दस सांसदों के भाग्य का फैसला भी ईवीएम में बंद हो गया है। इनमें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला सहित चार केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत,भूपेंद्र यादव, अर्जुनराम मेघवाल और कैलाश चौधरी भी शामिल हैं। प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से 2 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला और 23 पर सीधी टक्कर हैं। इनमें से 12 सीटों पर कांटे की टक्कर है। पहले चरण में मतदान प्रतिशत में कमी से जहां भाजपा खेमे में मायूसी थी और कांग्रेस खेमे में उत्साह देखा गया था, वहीं दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत पहले चरण से बेहतर होने से भाजपा खेमे में जोश देखा गया है,लेकिन 2019 के पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार मतदान प्रतिशत के गिरने से राजनीतिक हलकों में कयासों का बाजार गर्म है। अब भाजपा और कांग्रेस तथा अन्य दलों के नेता चुनाव परिणाम को लेकर अपने अपने आकलन लगा रहे हैं। भाजपा हेट्रिक लगाने के फेर में है, तो कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार प्रदेश में उनकी लगातार हार का क्रम टूटेगा। फलौदी का सट्टा बाजार भी इस बार भाजपा को 25 में से 25 सीटे नही दे रहा है। इस लिहाज़ से भाजपा की पिछले दो चुनावों की तरह इस बार भी लगातार तीसरी बार सभी 25 सीटों को जीत कर हैट्रिक लगाने का सपना संकट में पड़ता दिख रहा है लेकिन भाजपा को प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व पर पूरा भरोसा है। इधर कांग्रेस और इंडी एलायंस के दल यह उम्मीद पाल कर बैठे है कि उन्हें प्रदेश में इस बार कम से कम आधा दर्जन से अधिक सीटें मिलेंगी और प्रदेश में पिछले दो लोकसभा चुनावों के सूखे के बाद उनका खाता खुलने जा रहा है। हालांकि इन राजनीतिक कयासों पर से आगामी चार जून को आने वाले चुनाव परिणामों के बाद ही पर्दा उठेगा।

राजस्थान में लोकसभा चुनाव-2024 में प्रदेश की सभी 25 सीटों पर 62.10 फीसदी मतदान होने की खबर है। राजस्थान में प्रथम चरण में 12 लोकसभा सीटों पर 58.28 प्रतिशत, जबकि दूसरे चरण में 13 सीटों पर 65.52 प्रतिशत मतदान हुआ। 2019 में इन सीटों पर 68.42% मतदान हुआ था।लोकसभा सीट के हिसाब से सबसे ज्यादा बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर 75.93 फीसदी मतदान हुआ है। जबकि सबसे कम मतदान करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर 49.59 प्रतिशत हुआ है।
चुनाव आयोग ने विधानसभा वार मतदान के आंकड़े भी जारी कर दिए हैं, जो पिछली बार से है करीब 5 प्रतिशत कम है। प्रदेश की नोखा (बीकानेर) विधानसभा में इस बार सबसे कम 40.21 प्रतिशत मतदान हुआ है,वहीं बायतू (बालोतरा) और घाटोल (बांसवाड़ा) में सबसे ज्यादा 82.15 प्रतिशत मतदान हुआ हैं।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि प्रदेश में सबसे तगड़ी टक्कर बाड़मेर-जैसलमेर की सीट पर है। बाड़मेर सीट की चर्चा देश भर में हो रही है। यहां कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी के अलावा शिव विधानसभा सीट पर भाजपा के बागी होकर निर्दलीय विधायक बने रविन्द्र सिंह भाटी ने लोकसभा चुनाव मैदान में भी खड़े होकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। जानकारों का यहां तक मानना है कि इस क्षेत्र में भाटी को मिले जन समर्थन विशेष कर युवाओं का साथ मिलने से कोई आश्चर्य नहीं कि वे निर्दलीय सांसद बन जाएं। प्रदेश की कई सीटों पर कई बड़े चेहरे चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चा बाड़मेर सीट की ही रही है। भाजपा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कंगना रनौत को भी चुनाव प्रचार के लिए यहां बुलाना पड़ा।
प्रदेश की दो सीटों पर पूर्व मुख्यमंत्रियों अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के पुत्र वैभव गहलोत और दुष्यंत सिंह भी चुनाव मैदान में हैं। झालावाड़-बारां से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह और जालोर-सिरोही से पूर्व सीएम अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत चुनाव लड़ रहे हैं। दुष्यंत सिंह वर्तमान में सांसद हैं, लेकिन वैभव गहलोत अभी तक कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं। वे पिछला चुनाव जोधपुर से केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने हारे थे। इस बार सीट बदल कर वे अपने भाग्य को आजमा रहे है।

इधर कोटा से भाजपा प्रत्याशी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला चुनाव मैदान में हैं। वहीं, जोधपुर से केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अलवर से भूपेन्द्र यादव, बीकानेर से अर्जुन राम मेघवाल और बाड़मेर से कैलाश चौधरी भाजपा प्रत्याशी हैं। केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव का राज्यसभा सांसद के रूप में कार्यकाल इसी माह समाप्त हुआ है।

पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अपने 6 सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाया था लेकिन पार्टी ने इस बार किसी भी विधायक को लोकसभा का चुनाव नहीं लड़वाया, जबकि कांग्रेस ने अपने चार विधायकों को लोकसभा का टिकट दिया है। कांग्रेस विधायक हरीश मीना टोंक-सवाईमाधोपुर,ललित यादव अलवर, मुरारीलाल मीना दौसा और बृजेन्द्र ओला झुंझुनूं से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं,भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी,बाप) विधायक राजकुमार रोत बांसवाड़ा, आरएलपी विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर और निर्दलीय विधायक रविन्द्र सिंह भाटी बाड़मेर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार भाजपा-कांग्रेस की आठ महिला उम्मीदवार भी मुकाबले में फंसी हैं। भाजपा ने पांच तो कांग्रेस ने तीन सीटों पर महिला प्रत्याशी चुनावी दंगल में उतारी हैं। भाजपा ने श्रीगंगानगर, जयपुर, करौली-धौलपुर, नागौर और राजसमंद तो कांग्रेस ने भरतपुर, पाली, झालावाड़ से महिला प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा है।

इनके अलावा इस बार राजस्थान के चुनावी रण में तीन दल-बदलू नेता भी काफी चर्चा में रहे है। तीनों ही नेताओं ने दल बदल कर टिकट हासिल किए है। अंतिम समय तक इनकी सीट कांटे के मुकाबले में फंसी रही है। इनमें चूरू से सांसद राहुल कस्वां भाजपा छोड़ कांग्रेस में गए, बाड़मेर सीट पर आरएलपी छोड़ कांग्रेस में आए उम्मेदाराम बेनीवाल और बांसवाड़ा में कांग्रेस से विधायकी छोड़ भाजपा में आए महेन्द्रजीत सिंह मालवीया शामिल हैं।

इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने उदयपुर लोकसभा सीट पर ब्यूरोक्रेट्स को टिकट दिया है। दोनों ही प्रत्याशियों ने सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर चुनाव लड़ा। भाजपा ने परिवहन विभाग में अतिरिक्त आयुक्त रहें डॉ मन्नालाल रावत को उम्मीदवार बनाया तो कांग्रेस ने उदयपुर जिला कलक्टर रहें आईएएस ताराचंद मीना को टिकट दिया है।

कांग्रेस ने राज्य में लोकसभा की तीन सीटें सीकर, बांसवाड़ा और नागौर को अपने इंडिया गठबंधन सहयोगी दलों को दी है। लेकिन हैरत एंगेज ढंग से बांसवाड़ा में गठबंधन में देरी हुई तो कांग्रेस प्रत्याशी ने निर्धारित समयावधि में अपना नामांकन पत्र वापस नहीं लेकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। यहां विडंबना यह भी रही कि बाप पार्टी के साथ समझौता होने के बाद भी तकनीकी रूप से मतपत्र पर भी हाथ के निशान के साथ कांग्रेस उम्मीदवार अरविंद डामोर का वजूद बना रहा। अब वह जितने अधिक वोट काटेगा वे वोट भाजपा के लिए संजीवनी साबित होंगे।

भाजपा में स्टार प्रचारक के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ आदि नेताओं ने सबसे ज्यादा सभाएं और रोड शो किए,वहीं कांग्रेस की तरफ से पहले चरण में तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गांधी आदि नेताओं ने जनसभाएं की,लेकिन दूसरे चरण में कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए नहीं आया।

कुल मिला कर जानकारों का मानना है कि राजस्थान में कई सीटों पर भाजपा की जीत का मार्जिन घट सकता है लेकिन अधिकांश सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों के जीतने की संभावनाएं ही सबसे अधिक है। हालांकि कांग्रेस का मानना है कि कम से कम दस से बारह सीटों पर कांटे की टक्कर में उनके और सहयोगी दलों के प्रत्याक्षी बाजी मार सकते है।

देखना है इस बार राजस्थान में लोकसभा चुनाव में भाजपा,कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की जीत एक मृगतृष्णा साबित होंगी अथवा हकीकत में उनकी जीत कामयाबी की सीढ़ी सिद्ध होंगी?