पंजाब में शांति के फूल या आतंक की जंजीरें

प्रो. नीलम महाजन सिंह

आरंभ में ही मैं यह कहना चाहती हूँ कि मैंने 1980 के दशक में पंजाब में उग्रवाद को कवर किया था। एक युवा महिला पत्रकार के रूप में, छोटे से बच्चे, युवराज सिद्धार्थ सिंह के साथ, जिसे मैं कवरेज के दौरान अपने साथ ले जाती थी, कोइ आसान कार्य नहीं था! 80 के दशक में पत्रकारों ने उग्रवाद, सशस्त्र विद्रोह और रक्तपात को बहादुरी के साथ कवर किया। कुछ पत्रकारों के साथ एक साक्षात्कार में, मैंने ‘संत जरनैल सिंह भिंडरावाले’ के सात साक्षात्कार किया था। भिंडरावाले के साथ मेरे साक्षात्कार के कुछ अंश; ‘दी वीक’ और ‘रविवर’ पत्रिकाओं में कवर स्टोरी के साथ प्रकाशित हुए। हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अवलोकन किया कि, कैसे 80000 पुलिसकर्मियों वाली पंजाब राज्य पुलिस एक व्यक्ति, अमृत पाल सिंह को गिरफ्तार नहीं कर सकती? ‘वारिस पंजाब दे’ के आधुनिक, जुझारू अमृतपाल सिंह’ का अचानक ही उदय कैसे हुआ? हालांकि, ज़मीनी परिस्थिति जो भी हो, निश्चित रूप से फैसले लेना मुश्किल है। पंजाब उग्रवाद में उबल नहीं रहा है। पंजाब एक लोकतांत्रिक राज्य है, जहां ‘आम आदमी पार्टी’ के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की चुनी हुई सरकार है। पंजाब एक अति संवेदनशील राज्य है, क्योंकि इसकी सीमाएँ पाकिस्तान से जुड़ी हुई हैं।

यह अफगानिस्तान से ‘ड्रग्स रूट’ के कारण अत्यधिक असुरक्षित है। यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया जाए कि पंजाब की वर्तमान स्थिति; हालाँकि इसकी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है, की तुलना किसी भी तरह से 1980 के दशक के गहन उग्रवाद से नहीं की जा सकती है। वास्तव में यह रक्तरंजित, निर्दोष लोगों की हत्या थी, जिन्हें बड़ी संख्या में उन्हें बेरहमी से मार डाला गया था। तथाकथित उग्रवादियों को एक राजनीतिक दल का संरक्षण भी प्राप्त था! एक गलत राजनीतिक सलाह; ऐतिहासिक भूल को जन्म दे सकती है।

जैसे अमृतसर के ‘स्वर्ण मंदिर पर सेना का आक्रमण’! अकाल तख्त को गोलियों से छलनी कर देने वाली इस घटना को, सिक्ख समुदाय आज तक नहीं भूला पाया है। बावजूद इसके उन्होंने स्थिति से समझौता कर लिया है। सशस्त्र पुरुष और धर्म कोई नई बात नहीं है। धर्म व हथियार; ऐतिहासिक रूप से जुड़े हुए हैं; चाहे वह हिंदू धर्म हो, ईसाई, इस्लाम या सिख धर्म। एक सभ्य समाज में; विभिन्न धर्मों का ‘सिंक्रनाइज़ेशन’; समनजसय महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से हर धर्म, दूसरे धर्मों पर अपनी श्रेष्ठता दिखाने का प्रयास करते हैं, हालांकि सभी धर्म ‘ईश्वर की महिमा के लिए एक ही मार्ग की ओर ले जाते हैं’। हमने विश्व स्तर पर देखा है कि प्रतिष्ठित राजनीतिक दल; धार्मिक सशस्त्र आंदोलनों को संरक्षण देते हैं। भारत के एक प्रधान मंत्री ने संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को संरक्षण दिया। बेशक, ‘दी होली गोल्डेन टेंपल’ में देश-विरोधी, खालिस्तान समर्थक गतिविधियां हो रहीं थीं, लेकिन जनरल एस: सुंदरजी और राजीव गांधी के मित्र, अरुण सिंह, जिन्होंने स्वर्ण मंदिर का हवाई सर्वेक्षण भी किया था; ‘दरबार साहेब – गर्भगृह अकाल तख्त’ में सेना के आक्रमण की सलाह से, भारत का राजनीतिक इतिहास बदल दिया! दुनिया भर में सिखाई भावनाओं को गहरा आघात पहुँचा था। इसके कारण प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की, उनके ही बंदूकधारियों, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई। दिल्ली में हुए खूनी दंगों की तबाही सिक्ख संगत आज तक नहीं भूल सकी! इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद सीख कत्ले-आम में 3500 सिखों के मारे जाने का अनुमान है।इससे सिख युवकों की दो पीढिय़ां कट्टरपंथी बन गईं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गांधी, यूपीए; अध्यक्ष ने; दरबार साहब पर सैन्य हमले और 1984 के दंगों में सिखों की हत्या के लिए माफी मांगी है। निश्चित रूप से इंदिरा गांधी के सलाहकार, अन्य रणनीति बना सकते थे; जिससे स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को भगाने का कोई और तरीका अपनाया जा सकता? राजनैतिक नेतृत्व के साथ मतभेदों के कारण विभिन्न धर्मों के युवाओं का कट्टरपंथीकरण हो रहा है। आज पंजाब में अमृतपाल सिंह की तलाश हो रही है। क्या अमृतपाल को ‘ओवरप्ले किया’ गया है? राज्य अब इस नैरेटिव पर हावी हो रहा है। राज्य राजनैतिक व संभावित ध्रुवीकरण से कैसे निपटता है, यह देखा जाना बाकी है। ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह और उनके साथियों के खिलाफ कार्रवाई के बीच रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों ने फ्लैग मार्च किया। दूरदर्शिता के साथ, यह कहना उचित है कि अमृतपाल सिंह को अगस्त 2022 में भारत लौटने के बाद जल्द गिरफ्तार किया जाना चाहिए था।

उसके बाद उसके अपराध लगभग तुरंत शुरू हो गए, यहाँ तक कि उसका समर्थन आधार बढ़ने लगा। इससे भी बदतर, दोनों राजनीतिक और प्रशासनिक बयानों में और मीडिया के अनुमानों में, एक ‘जीवन से भी बड़ी छवि’ बनाई जा रही थी, जो उसके वास्तविक महत्व के अनुपात से बहुत दूर थी। राज्य व उसकी एजेंसियों को निश्चित रूप से उनकी विफलताओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। सनसनीखेज मीडिया ने गैर-जिम्मेदार मिथक-निर्माण, गैर आलोचनात्मक कार्य किया। ‘भिंडरावाले 02’, 1980 के दशक में कथित वापसी, उनकी स्पष्ट रूप से ध्यानाकर्षित करने वाली हरकतों का लगातार कवरेज, चापलूस साक्षात्कारों की श्रृंखला व अन्य अतिश्योक्ति व रिपोर्टिंग में विकृतियों ने, अमृतपाल सिंह के कार्यों को बढ़ाकर पेश किया, उसे मंच प्रदान किये, जो अन्यथा उसे कब्ज़ा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता! सितंबर 1981 में पंजाब पुलिस ने ‘दमदमी टकसाल के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाले’ को सांसद लाला जगत नारायण, जालंधर स्थित अखबार ‘पंजाब केसरी’ के मुख्य संपादक और मालिक; हिंद समाचार ग्रुप ऑफ पेपर्स, जिनकी 9 सितंबर को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी; ‘हत्या की साज़िश में कथित भूमिका’ के लिए गिरफ्तार करने का फैसला किया। भिंडरावाले ने 20 सितंबर, 1981 को चौक मेहता, अमृतसर में एक भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकार उन्हें कभी भी मार सकती है। जैसा ही पंजाब पुलिस ने पिछले हफ्ते, अमृतपाल सिंह पर अपनी कार्रवाई शुरू की, कई लोगों ने राज्य में वर्तमान स्थिति और 1980 के दशक की शुरुआत के बीच समानताएं आरंभ कर दीं। लेकिन यह सच्चाई से कहीं दूर है। सारांशार्थ; अमृत पाल सिंह ना ही संत है, ना ही पंजाब के युवाओं का शुभचिंतक। वो मात्र आतंकी है, जो भारत की संप्रभुता को खण्डित करने का प्रयास कर, दीप संधू की हत्या के बाद, अन्तर्राष्ट्रीय षड्यन्त्र का हिस्सा है। के.पी.एस. गिल, आईपीएस, ने कठिन निर्णय लेकर पंजाब में आतंकवाद को नियंत्रित किया था। हालाँकि उन पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लगे। अब केन्द्रिय व पंजाब सरकार को एकजुटता से इस विषम परिस्थिति को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। पंजाब में शांति के फूल खिलें और आतंकवाद की जंजीरों को तोड़ा जाना, समय की पुकार है।
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन* *व्यक्तित्व, मानवाधिकार संरक्षण सॉलिसिटर)