तरक्की चाहिए तो छोड़नी होगी कट्टरता

डा. पवन सक्सेना

अखंड भारत यानी ग्रेटर इंडिया की आवाज नई नहीं है। संघ प्रमुख मोहन भागवत
के ताजा सम्बोधन ने इसे नया जरूर कर दिया है। संघ प्रमुख ने एक टाइम लाइन
जोड़ी है – पन्द्रह साल की। लेकिन, क्या यह संभव है। क्या, ऐसा हो सकता
है कि 15 सालों में हम यानी भारतवासी, ईरान, अफगानिस्तान से लेकर वर्मा
और शायद कम्बोडिया तक एक ही देश, एक ही भूभाग हो जायें। शायद, इस विचार
को आप सिर्फ सनसनी फैलाने वाले टीवी चैनल्स की हेडलाइन्स से नहीं समझ
सकते। मामला जटिल है। यहां विचारों का फास्ट फूड नहीं, आपको अपने दिमाग
की धीमीं आंच पर तथ्यों और तर्को की एक खिचड़ी पकानी पड़ेगी। इस विषय की
गहराई में गोता लगाने के लिए हमें अतीत को समझना, वर्तमान को परखना और
भविष्य को गढ़ना होगा। चलिए, आगे लिखी लाइनों में कुछ ऐसा ही करने की
कोशिश करते हैं यानी डिकोड करते हैं अखंड भारत के सपने, उसकी हकीकत और
सच्चाई को।

सबसे पहले बात इतिहास की। हम इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते कि हजारों
सालों में भारत के कई टुकड़े हुए। थोड़ा मिथक, थोड़ी पौराणिकता और उपलब्ध
इतिहास, तीनों में ही हजारों सालों में बनते बिगड़ते भारतीय साम्राज्यों
की छवियां आपको मिल जायेंगी। बृहत्तर भारत सिमटते सिमटते वर्तमान भारत
बना है। ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बंगलादेश,
श्रीलंका, वर्मा, मालदीव से लेकर कम्बोडिया तक का इलाका किसी ना किसी रुप
में कभी ना कभी भारत रहा है। वक्त के साथ अब यह सभी स्वतंत्र देश हैं।
तो फिर अखंड भारत के विचार का मतलब क्या है – क्या हम ऐसा सोच रहे हैं कि
मौजूदा सत्ता कोई अश्वमेघ यज्ञ करेगी और फिर उसके घोड़े सभी दिशाओं में
बसे इन देशों को जायेंगे और जो घुटने नहीं टेकेगा , हम उसे अपनी सैन्य
ताकत की बदौलत जीत लेंगे। वर्तमान दौर का मोस्ट पापुलर नरेटिव यानी सबसे
लोकप्रिय विचार यही हो सकता है। यह हमारे अधिसंख्य लोगों को खुशी, ऊर्जा
से भर देता है। यह कुछ कुछ चीन के ग्रेटर चाइना विचार से मिलता जुलता है,
जिसमें चीन अपनी सैन्य ताकत की बदौलत तिब्बत की तरह कई इलाकों को हड़पना
चाहता है। क्या हम ऐसा सोच या कर सकते हैं, इस सवाल का जवाब मैं आपके ऊपर
ही छोड़ता हूं। दूसरे तरीके के लिए भी चीन का उदाहरण देना होगा। यह तरीका
है साम्राज्यवादी आर्थिक गुलामी का रास्ता। जो कुछ कुछ ब्रिट्रिश
कालोनियल सिस्टम के तरीकों से मिलता है। यानी व्यापार करने जाये और देश
हड़प लो। यह तरीका कुछ आधुनिक सशोधनों के साथ चीन श्रीलंका, पाकिस्तान या
फिर कुछ अफ्रीकन देशों पर आजमा रहा है। क्या हम ऐसा कर सकते हैं। खुली
आंखों से इस सवाल का जवाब ढूढेंगे तब जवाब ना में ही मिलेगा । संघ प्रमुख
भी सनातन धर्म का हवाला देते हुए अखंड भारत यानी ग्रेटर इंडिया की बात कह
रहे हैं। मुझे आर्थिक साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और सैन्य आक्रमण जैसे
विकल्प इन लाइनों के बीच छिपे हुए विकल्प के रूप में महसूस नहीं होते।

फिर, ऐसे में हम क्या समझें, क्या संघ प्रमुख जो कह रहे हैं, वह खाली
लोकप्रिय बयान भर है। मुझे ऐसा नहीं लगता। मुझे लगता है समस्या उनके
विचार या उसकी अभिव्यक्ति में नहीं है। उन लोगों के समझने में है, जो
सिर्फ वही सुनना या समझना चाहते हैं, जो उनके दिल दिमाग को अच्छा लगे।
अखंड भारत, संघ का आज का नहीं, बेहद पुराना विचार है। इसमें जो नया है,
वह है सिर्फ 15 साल की टाइमलाइन। इससे पहले संघ के बाहर भी समाजवादी
विचारक राममनोहर लोहिया जी, समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव भी इस तरह के
विचार देश के सामने ला चुके हैं। कुछ अलग रूप में। इन्होंने भारत,
पाकिस्तान और बंगलादेश के महासंघ की बात कही थी। देश के लोकप्रिय
न्यायमूर्ति रहे जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने भी इस विषय़ पर काफी काम भी
किया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी वहीं का वहीं है, कि आखिरकार यह होगा
कैसे।

हमें इस सवाल का जवाब खोजते हुए यूरोप तक जाना होगा। शायद यूरोपिय यूनियन
( ईयू ) के विचार में हमारे अखंड भारत के विचार का जवाब हमें मिल जाये।
यूरोप के 27 देशों ने मिलकर एक अखंड यूरोप या कहें कि यूरोपिय यूनियन को
बनाया है। इन सभी देशों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी है और आर्थिक,
सैन्य और विदेशी मामलों में यह एक भी हैं, वो भी बेहद मजबूती से।
सोचकर देखिये, अगर पुराना अखंड भारत, वर्तमान दौर का एशियन यूनियन, साउथ
एशियन यूनियन या कोई लोकप्रिय नाम वाला महासंघ बन सके । जहां आप बिना
वीजा के अफगानिस्तान से वर्मा तक जा सकें। जहां यूरो की तरह हम सभी की एक
कामन मुद्रा हो। बड़े और भारी भरकम सैन्य बजट का इस्तेमाल तरक्की के
कामों में हो। शिक्षा बढ़े, व्यापार बढ़े, स्वास्थ्य बेहतर हो। अगर ऐसा
हो गया तब कुछ ही दशकों में हम अमेरिका, चीन और रूस से भी बड़ी महाशक्ति
बन जायेंगे। लेकिन इस सुनहरे सपने की कुछ कीमत भी है। सदियों से
अविष्कारों, नएपन, नवोन्मेषण से दूर रहे हम साउथ एशियंस अगर अपने अपने
राग, देष और धार्मिक कट्टरताओं को छोड़ सकें। तभी यह सपना जमीन पर उतर
सकता है। बहुत बड़े दिल दिमाग वाला अगर कोई राजनेता यह कर पाता है तब वह
आने वाले वक्त का सबसे बड़ा वर्ल्ड लीडर होगा। यह दुनिया बदलने वाला विषय
है, केवल नेता ही नहीं बड़े पैमाने पर समाजिक प्रभाव रखने वाले लेखक,
संपादक, पत्रकार, कवि, साहित्यकार, समाजिक प्रभावकर्ता, रिसर्च करने
वाले, शिक्षाविद, कलाकार, सिनेमा बिरादरी सभी को इस पर सोचना, लिखना और
माहौल बनाना होगा। कोई बड़े दिल दिमाग पर राजनेता अगर इसका शिल्पी बन सके
तब यकीनन वह आने वाले वक्त का सबसे बड़ा वर्ल्ड लीडर होगा। लेकिन, अगर
ऐसा कुछ नहीं होता है तब आप भी अपने टीवी की गरमागरम, मसालेदार बहसों को
देखिये और जब देखते देखते जब थक जायें तब सो जाइये और सपने में अखंड भारत
का सपना देखिये…। धन्यवाद।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, बिजनेसमैन एवं भारतीय राजनेता हैं )