क्या भ्रष्टाचार की शिकायत वापिस होनी चाहिए?

अशोक मधुप

उत्तर प्रदेश के पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्य के खिलाफ की गई भ्रष्टाचार की शिकायत को उनके पति आलोक मौर्य ने वापस ले लिया है। सोमवार को कमिश्नर और जांच अधिकारी को पत्र देकर उन्होंने अपनी शिकायत वापस लेने का प्रार्थना पत्र दिया है।प्रश्न यह है कि क्या भ्रष्टाचार की शिकायत वापस ली जा सकती है। शिकायतकर्ता ज्योति मौर्य के पति ने मंडलायुक्त को शिकायत वापस लेने के लिए भले ही प्रार्थना पत्र दे दिया हो , किंतु शिकायत बहुत गंभीर प्रवृति की है।इसकी जांच तो होनी ही चाहिए । बल्कि आयकर विभाग से भी इस शिकायत की जांच कराई जानी चाहिए।

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में सफाई कर्मी के पद पर तैनात आलोक मौर्य ने अपनी एसडीएम पत्नी ज्योति मौर्य के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे। उसने अपनी पत्नी ज्योति मोर्या की उस कथित डायरी के 32 पन्नों के फोटोग्राफ भी शिकायत के समर्थन में पेश किया था ,जिसमें लाखों रुपये के लेनदेन का लेखा−जोखा था। बताया जा रहा था कि डायरी में लाखों के लेनदेन का ब्यौरा दर्ज है।

शासन ने मामले की जांच के लिए कमिश्नर प्रयागराज विजय विश्वास पंत की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है। जांच कमेटी ने आठ अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान आलोक से सबूत मांगे थे। आलोक ने 20 दिन का समय मांगा था। पीसीएस अफसर ज्योति मौर्या उस दिन जांच कमेटी के सामने पेश नहीं हुईं ।

ज्योति मौर्या केस में आठ अगस्त को सुनवाई पर आए आलोक ने कहा था, “मैंने ज्योति पर जो भी आरोप लगाए हैं। मुझे उन्हें साबित करने के लिए समय दिया जाए।” कमेटी ने बात सुनने के बाद कहा था, “आपके पास 20 दिन का समय है। इतने समय में आपने जो भी आरोप लगाए हैं। उनका सबूत पेश करें। इसके बाद जांच कमेटी ने 28 अगस्त को फिर से पेश होने का आदेश दिया था।”

जांच समिति ने आलोक को सोमवार 28 अगस्त को आरोप के संबंध में साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए बुलाया था। सोमवार को जांच अधिकारी के समक्ष पहुंचे आलोक मौर्य ने कहा कि भ्रष्टाचार का आरोप उसने ही अपनी पत्नी पर लगाया था और इसकी जांच की मांग की थी, लेकिन अब वह अपनी शिकायत को वापस ले रहा है। इसके लिए उसने प्रार्थना पत्र भी दिया है। ज्ञात्वय है आलोक मौर्य की शिकायत पर शासन के आदेश पर कमिश्नर विजय विश्वास पंत की देखरेख में तीन सदस्यीय कमेटी जांच कर रही थी।

आलोक मौर्य और ज्योति मौर्य की शादी 2010 में हुई थी। 2009 में आलोक का चयन पंचायती राज विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में हुआ था। इसके बाद उन्होंने ज्योति की पढ़ाई करवाई। साल 2015 में ज्योति का चयन एसडीएम पद पर हो गया। लोक सेवा आयोग से महिलाओं में ज्योति की तीसरी रैंक और ऑल ओवर 16वीं रैंक थी। सभी बहुत खुश थे। 2015 में जुड़वां बच्चियां हुईं।

पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्य के पति आलोक ने शासन को शिकायती पत्र भेजकर ज्योति पर हर माह पांच से छह लाख रुपये वसूली का आरोप लगाया था। आलोक ने अपनी शिकायत के समर्थन में डायरी के पन्नों की छाया प्रति भी लगाई थी, जिसमें लेन-देन का पूरा हिसाब लिखा जाता था। शिकायत मिलने के बाद शासन ने कमिश्रर विजय विश्वास पंत को जांच सौंपी थी। कमिश्नर ने जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई । इसमें अपर आयुक्त प्रशासन अमृतलाल और दो अन्य सदस्य शामिल हैं।

लिखित शिकायत और डायरी के लाखों के लेन −देन वाले डायरी के पन्ने की छाया प्रति लगाने के बाद आलोक का सबूत के लिए बुलाना उचित प्रतीत नही होता। जांचकर्ताओं को चाहिए था कि आलोक की पत्नी को बुलाकर उससे पूछता डायरी उसकी है या नही। ज्योति के मना करने पर ज्योति का लेख लेकर डायरी के पन्नों की छाया प्रति के साथ लेख विशेषज्ञ को जांच के लिए भेजा जाना चाहिए था।अगर लेख एक ही मिलता तो कार्रवाई होनी चाहिए थी।दरअस्ल ये प्रकरण एक पीसीएस अधिकारी का है, इसलिए अधिकारी इस प्रकरण को खत्म करना चाहेंगे।आईएएस और पीसीएस अधिकारियों की एक बडी लाँबी है। वह अपने लोगों को बचाने में रूचि रखती है। ज्योति का पति एक सफाई कर्मी है। उसकी पीसीएस पत्नी ज्योति करोड़ो की स्वामिनी होगी।लगता है कि ज्योति और आलोक के बीच में कोई डील हो गई। उसी के परिणाम स्वरूप सुबूत के लिए बुलाए जाने पर आलोक ने शिकायत वापस लेने का प्रार्थना पत्र दे दिया। वरना इस तरह का पत्र तो वह पहली सुनवाई पर ही दे सकता था।

हो सकता है कि ज्योति की जांच अधिकारियों से बात हो गई हो , कि वह शिकायत वापसी का प्रार्थना पत्र मिलने पर शिकायत निरस्त कर फाइल बंद कर देंगे।फाइल बंद होगी या नही ये तो जांच अधिकारी जाने , किंतु मामला गंभीर भ्रष्टाचार का है, इसलिए जांच होनी ही चाहिए।

दरअस्ल इस तरह की शिकायत पर शासन की और से जांच शुरू होने के बाद शिकायत करता का शिकायत वापस लेने के लिए प्रार्थना पत्र देना शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता संदिग्ध करता है। उसने भले ही जांचकर्ता अधिकारियों के सामने और मीडिया के सामने कहा हो कि इस पर शिकायत वापस लेने का कोई दबाव नही है,किंतु उसकी शिकायत वापस लेने का प्रार्थना पत्र यह बताने के लिए काफी है कि कहीं कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। जांच समिति के सामने पहले शिकायत के सबूत के लिए बीस दिन का समय लेना और बीस दिन बाद शिकयत को वापिस लेने का प्रार्थना पत्र देना बहुत कुछ खुद कहताहै।जांचकर्ता टीम को चाहिए कि शिकायत वापस लेने का प्रार्थना पत्र निरस्त कर जांच जारी रखे।साथ ही शिकायत करने के बाद शासन स्तर से जांच शुरू होने पर प्रार्थना पत्र वापस लेने के अनुरोध करने वाले आलोक के खिलाफ ही सरकार का समय बरबाद करने, सरकार के साथ झूंठ बोलने के लिए उसके खिलाफ ही कार्रवार्इ होनी चाहिए। वह सरकारी सेवा में सफाई कर्मी है ।ऐसे में कदाचार और झूठी शिकायत में उसे सेवा से निकला जा सकता है। उसके विरूद्ध कदाचार का केस चलाना चाहिए।ऐसे तो कोई भी किसी के खिलाफ शिकायत करेगा,बाद में गुपचुप समझौता कर शिकायत वापिस ले लेना।

पहले प्रत्येक शिकायत पर जांच होती थी। आमतौर पर शिकायत कर्ता शिकायत करने वाले के नजदीकी होता है,वह उसके राज जानता है, इसलिए वह अपना परिचय गुप्त रखना चाहता है। ऐसी गुप्त शिकायतों पर ही काफी बड़े भ्रष्टाचार खुले हैं। लालू यादव का 950 करोड़ का चारा घोटाला भी ऐसी ही गुमनाम शिकायत पर खुला था।लेकिन शिकायतों की जांच से बचने के लिए अब प्रशासन ने तै कर लिया कि गुमनाम शिकायतों की जांच नही होगी। शिकायत करने वाले को शिकायत के साथ सुबूत लगाने पर भी उसे साक्ष्य देने के लिए बुलाया जाएगा। होना यह चाहिए कि भ्रष्टाचार के सुबूत लगे होने पर तुरंत जांच शुरू हो जाए।इस शिकायत में तो पीसीएसअधिकारी और शिकायतकर्ता की पत्नी की डायरी के पन्नों की छाया प्रति लगी है। इन पन्नों में लाखों का लेन−देन दर्ज है। जांचकर्ताओं को चाहिए था कि इस शिकायत की एक प्रति आयकर विभाग को कार्रवाई के लिए और भेजते। केंद्रीय सतर्कता आयोग पहले ही कह चुका है कि प्रत्येक गुमनाम शिकायत निरस्त नही की जानी चाहिए। शिकायत की प्रकृति देखी जानी चाहिए।गंभीर प्रकार की शिकायत पर जांच होनी ही चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)